जानिए कौन है पसमांदा मुसलमान क्या है इनका इतिहास ? आखिर हमारे प्रधानमंत्री क्यों पसंद करते है इन्हें | Know who are Pasmanda Muslims and what is their history? Why does our Prime Minister like them in hindi ?

पसमान्दा मुसलमान वे मुसलमान हैं जो सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों से आते हैं, जैसे कि दलित, पिछड़े (OBC) और आदिवासी समुदाय। "पसमान्दा" एक उर्द

जानिए कौन है पसमांदा मुसलमान क्या है इनका इतिहास ? आखिर हमारे प्रधानमंत्री क्यों पसंद करते है इन्हें   

पसमान्दा मुसलमान वे मुसलमान हैं जो सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों से आते हैं, जैसे कि दलित, पिछड़े (OBC) और आदिवासी समुदाय। "पसमान्दा" एक उर्दू शब्द है जिसका अर्थ होता है – "जो पीछे छूट गए"

Pasmanda Muslims

सरल शब्दों में समझिए:

जैसे हिंदू समाज में जाति व्यवस्था है (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, दलित), वैसे ही भारतीय मुसलमानों के भीतर भी जातीय भेदभाव मौजूद है। भले ही इस्लाम बराबरी की बात करता है, लेकिन भारत में जिन लोगों ने इस्लाम कबूल किया, वे अपनी पुरानी जाति पहचान को भी साथ लेकर आए।

उदाहरण:

मान लीजिए कोई व्यक्ति दलित पृष्ठभूमि से था और उसने कई पीढ़ियों पहले इस्लाम धर्म अपना लिया। अब भले ही वह मुसलमान है, लेकिन उसे उच्च जाति के मुसलमानों से कमतर माना जाता है। ऐसे व्यक्ति को पसमान्दा मुसलमान कहा जाता है।

"पसमान्दा" शब्द का अर्थ, उत्पत्ति और इतिहास 


📖 "पसमान्दा" शब्द का अर्थ:

"पसमान्दा" एक उर्दू शब्द है, जो मूलतः फ़ारसी भाषा से लिया गया है।
इसका अर्थ होता है –
👉 "पीछे छूटे हुए",
👉 "वंचित",
👉 "दबाए गए लोग"

यह शब्द आज भारत में मुस्लिम समाज के भीतर के पिछड़े, दलित और आदिवासी मुसलमानों के लिए प्रयोग किया जाता है — जिन्हें सामाजिक, शैक्षिक और राजनीतिक रूप से बराबरी नहीं मिली है।


🧬 शब्द की उत्पत्ति:

  • "पस" = पीछे

  • "मांदा" = छोड़ा गया / गिरा हुआ

इन दोनों शब्दों से मिलकर बना — "पसमान्दा", जिसका शाब्दिक अर्थ है: "जो पीछे रह गया हो"

यह कोई धार्मिक शब्द नहीं है, बल्कि सामाजिक स्थिति को दर्शाने वाला शब्द है।

जो पसमान्दा नहीं होते:

वे मुसलमान जो खुद को "उच्च जाति" मानते हैं, जैसे:

  • सैयद (जो पैग़म्बर मोहम्मद की नस्ल से होने का दावा करते हैं)

  • शेख

  • पठान

  • मुगल, आदि।
    ये लोग खुद को "अशराफ" यानी उच्च वर्ग के मुसलमान मानते हैं और आमतौर पर पसमान्दा नहीं कहे जाते।

एक व्यावहारिक उदाहरण:

  • उत्तर प्रदेश या बिहार का कोई अंसारी (जुलाहा/बुनकर) मुसलमान आमतौर पर पसमान्दा माना जाता है।

  • एक सैयद मुसलमान उसे अपने बराबर नहीं मानता, भले ही दोनों इस्लाम को मानते हों।

यह क्यों महत्वपूर्ण है?

पसमान्दा मुसलमान अक्सर मांग करते हैं:

  • राजनीतिक प्रतिनिधित्व में बराबरी

  • शिक्षा और नौकरी में हक

  • मुस्लिम समाज के भीतर भेदभाव का अंत

इतिहास और पृष्ठभूमि:

🔹 भारत में इस्लाम और जाति व्यवस्था:

  • जब भारत में इस्लाम आया, तो बहुत से नीची जातियों के लोग (जैसे शूद्र, दलित आदि) समता और बराबरी की आशा में मुसलमान बने

  • लेकिन मुस्लिम समाज ने भी धीरे-धीरे हिंदू जाति व्यवस्था की तरह एक सामाजिक ढांचा अपना लिया, जिसमें:

    • सैयद, शेख, पठान, मुगल जैसे लोग खुद को "अशराफ" (उच्च जाति) मानते हैं।

    • वहीं बुनकर (अंसारी), नाई (हजाम), कसाई (कुंजड़ा), धुनिया, आदि को "अजलाफ" या "अरज़ल" (निचली जाति) माना गया।

🔹 स्वतंत्र भारत में स्थिति:

  • आज़ादी के बाद भी मुस्लिम समाज के अंदर जातिगत भेदभाव बना रहा

  • पिछड़े और दलित मुसलमानों को न तो राजनीति में जगह मिली, न ही सामाजिक सम्मान।

  • इसलिए 1990 के दशक में "पसमान्दा" शब्द एक आंदोलन के रूप में उभरा

समान्दा आंदोलन क्या है?

पसमान्दा आंदोलन एक सामाजिक और राजनीतिक मुहिम है जिसका उद्देश्य है:

  • मुस्लिम समाज के भीतर जातिगत भेदभाव को खत्म करना,

  • पिछड़े और दलित मुसलमानों को उनकी पहचान, अधिकार और सम्मान दिलाना,

  • राजनीति, शिक्षा, रोजगार और समाज में समान अवसर सुनिश्चित करना।

इस आंदोलन की शुरुआत 1990 के दशक में ज़ोर पकड़ने लगी, हालांकि इसकी जड़ें इससे भी पहले की सामाजिक असमानता में हैं।


🔹 प्रमुख नेता और संगठनों की जानकारी:

1. अली अनवर अंसारी

  • बिहार के रहने वाले एक प्रमुख राजनीतिक और सामाजिक कार्यकर्ता हैं।

  • उन्होंने "पसमान्दा मुस्लिम महाज़" (1998 में) नामक संगठन की स्थापना की।

  • उनकी किताब "मसावात की जंग" (बराबरी की लड़ाई) इस आंदोलन की विचारधारा को बहुत अच्छे से प्रस्तुत करती है।

  • वे राज्यसभा सांसद भी रहे और उन्होंने लगातार मुस्लिम समाज के अंदर के अशराफ-पसमान्दा भेदभाव की बात उठाई।

2. पसमान्दा मुस्लिम महाज़

  • यह संगठन मुख्य रूप से बिहार और उत्तर भारत में सक्रिय है।

  • इसका मकसद है – दलित और पिछड़े मुसलमानों को आरक्षण का लाभ दिलवाना, और राजनीतिक प्रतिनिधित्व में हिस्सेदारी बढ़ाना

3. डॉ. कलीमुल हाफ़ी

  • सामाजिक चिंतक और लेखक। उन्होंने मुस्लिम समाज में जाति व्यवस्था पर कई लेख और भाषण दिए हैं।

  • वे कहते हैं कि इस्लाम की बराबरी की शिक्षा को भारत के मुस्लिम समाज ने पूरी तरह अपनाया नहीं है।

4. पसमांदा मुस्लिम संघर्ष मोर्चा

  • यह एक और संगठन है जो उत्तर प्रदेश में सक्रिय है।

  • इसका उद्देश्य है – शैक्षिक जागरूकता, सामाजिक एकता और राजनीतिक भागीदारी


🧭 आंदोलन की मुख्य माँगें:

  1. SC/ST/OBC की तरह दलित और पिछड़े मुसलमानों को भी आरक्षण मिले

  2. मुस्लिम समाज के अंदर उच्च जाति के वर्चस्व को खत्म किया जाए

  3. शिक्षा और रोज़गार में बराबरी का अवसर मिले

  4. राजनीतिक दलों में पसमान्दा मुसलमानों को टिकट और भागीदारी मिले, सिर्फ ऊँची जाति के मुसलमानों को नहीं।

हमारे प्रधानमंत्री पसमान्दा मुसलमानों को इतना महत्व क्यों देते हैं?

हाल के वर्षों में आपने देखा होगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी (BJP) बार-बार "पसमान्दा मुसलमानों" का ज़िक्र कर रहे हैं। यह अचानक नहीं हुआ, इसके पीछे कुछ राजनीतिक, सामाजिक और रणनीतिक कारण हैं। आइए इसे सरल भाषा में समझते हैं।


🔍 1. राजनीतिक रणनीति (Political Strategy):

  • पारंपरिक रूप से मुस्लिम वोट कांग्रेस, समाजवादी पार्टी (SP), RJD, TMC, BSP जैसे दलों को मिलता रहा है।

  • BJP को मुस्लिम वोट कम ही मिला, खासकर पसमांदा मुसलमानों का भी नहीं।

  • लेकिन BJP ने अब यह समझा कि सभी मुसलमान एक जैसे नहीं हैं — और पसमान्दा मुसलमान "अशराफ" मुसलमानों से अलग सोचते हैं

  • इसलिए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा:
    👉 "हर मुसलमान तुष्टिकरण नहीं चाहता, बल्कि भागीदारी चाहता है।"

➡️ BJP अब सीधे पसमांदा मुसलमानों को जोड़ने की कोशिश कर रही है, ताकि उन्हें लगे कि पार्टी उनके बारे में सोच रही है।


🤝 2. समाजिक न्याय और समावेश की छवि (Inclusive Image):

  • जब प्रधानमंत्री पसमांदा, महिलाएं, पिछड़े वर्ग जैसी बातें करते हैं, तो उनकी एक छवि बनती है कि वह सबको साथ लेकर चलने वाले नेता हैं।

  • उन्होंने कहा कि: 👉 "हम मुसलमानों का तुष्टिकरण नहीं करेंगे, हम उन्हें सशक्त बनाएंगे।"

➡️ इससे उनकी छवि एक विकास और सबका साथ, सबका विश्वास वाले नेता की बनती है।


🧩 3. "वोट बैंक की राजनीति" को तोड़ना:

  • BJP का मानना है कि कांग्रेस और अन्य दलों ने सिर्फ ऊँची जाति के मुसलमानों (सैयद, शेख आदि) को ही आगे बढ़ाया, लेकिन पसमान्दा को नजरअंदाज किया।

  • मोदी ने कहा: 👉 "पिछड़े मुसलमानों को कभी फायदा नहीं मिला, सिर्फ वोट के लिए इस्तेमाल किया गया।"

➡️ इसलिए वे कहते हैं कि BJP वोट नहीं, बदलाव चाहती है


🧱 4. जमीनी स्तर पर पहुँच बनाना (Grassroot Connection):

  • पसमान्दा मुसलमानों में कई जातियाँ आती हैं: अंसारी (बुनकर), कुंजड़ा (सब्ज़ी बेचने वाले), कसाई, दर्ज़ी, मोची, नाई आदि।

  • ये लोग आम तौर पर गांव, कस्बों, छोटे शहरों में रहते हैं, और BJP इन तक सीधे पहुँचने की रणनीति बना रही है

➡️ ताकि मुसलमानों के बीच BJP को लेकर जो दूरी है, वह कम हो।

 (FAQ in Hindi)


🔹 Q1: पसमान्दा मुसलमान कौन होते हैं?

उत्तर:
पसमान्दा मुसलमान वे हैं जो सामाजिक रूप से पिछड़ी जातियों से आते हैं, जैसे कि दलित, OBC और आदिवासी मुसलमान। इनमें अंसारी, कुंजड़ा, कसाई, धोबी, नाई, दर्जी जैसी जातियाँ शामिल हैं।


🔹 Q2: प्रधानमंत्री मोदी को पसमान्दा मुसलमानों में इतनी रुचि क्यों है?

उत्तर:
प्रधानमंत्री मोदी पसमान्दा मुसलमानों को इसलिए महत्व दे रहे हैं क्योंकि:

  • वे मुस्लिम समाज का बड़ा हिस्सा (लगभग 80-85%) हैं।

  • उन्हें अब तक राजनीतिक प्रतिनिधित्व नहीं मिला

  • BJP उन्हें नई पहचान और भागीदारी देना चाहती है।


🔹 Q3: क्या यह सिर्फ वोट बैंक की राजनीति है?

उत्तर:
यह राजनीति जरूर है, लेकिन BJP इसे "सशक्तिकरण की राजनीति" कहती है, न कि तुष्टिकरण की।
मोदी का बयान:
👉 "हम तुष्टिकरण नहीं, सशक्तिकरण चाहते हैं।"


🔹 Q4: क्या इससे मुस्लिम समाज में जातिगत भेदभाव स्वीकार किया गया?

उत्तर:
जी हाँ। पहले मुस्लिम समाज में जाति की बात नहीं की जाती थी, लेकिन पसमान्दा आंदोलन और अब सरकार द्वारा इस मुद्दे को उठाने से यह स्वीकार हो चुका है कि जाति आधारित भेदभाव मुस्लिम समाज में भी मौजूद है।


🔹 Q5: क्या प्रधानमंत्री मोदी ने कोई विशेष योजना चलाई है पसमान्दा मुसलमानों के लिए?

उत्तर:
अभी तक कोई अलग योजना घोषित नहीं हुई है, लेकिन:

  • "वोकल फॉर लोकल",

  • स्वरोजगार, शिक्षा, हाउसिंग योजनाओं में
    पसमान्दा समुदाय को जोड़ने की बातें की गई हैं।


🔹 Q6: क्या भाजपा को इससे चुनावी फायदा मिला है?

उत्तर:
कुछ राज्यों (जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार) में गांवों के मुस्लिम इलाकों में भाजपा को थोड़ी बढ़त मिली है, खासकर जहाँ पसमान्दा समुदाय बड़ी संख्या में हैं।
हालांकि, यह अभी पूर्ण रूप से सुनिश्चित नहीं है।


🔹 Q7: क्या अन्य राजनीतिक दल भी अब पसमान्दा मुद्दों पर ध्यान दे रहे हैं?

उत्तर:
हाँ, अब कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, TMC, RJD भी पसमान्दा शब्द और मुद्दों पर बात करने लगे हैं, क्योंकि वे BJP की इस रणनीति को चुनौती देना चाहते हैं।


🔹 Q8: क्या मोदी सरकार में किसी पसमान्दा नेता को बड़ा पद मिला है?

उत्तर:
अब तक ऊँचे पदों पर बहुत सीमित पसमान्दा नेता ही पहुंचे हैं, लेकिन राज्यसभा, पंचायत, और स्थानीय निकायों में कुछ पसमान्दा चेहरों को जगह मिली है।


🔹 Q9: क्या यह कदम मुस्लिम समाज में विभाजन पैदा कर रहा है?

उत्तर:
कुछ लोग ऐसा मानते हैं, लेकिन पसमान्दा समर्थक इसे सामाजिक न्याय और हक की लड़ाई कहते हैं, न कि विभाजन।


🔹 Q10: क्या पसमान्दा मुद्दा आने वाले चुनावों में बड़ा मुद्दा बनेगा?

उत्तर:
जी हाँ। 2024 और राज्य चुनावों में यह मुद्दा भाजपा की रणनीति का अहम हिस्सा बन सकता है, और इससे अन्य दलों की मुस्लिम राजनीति भी बदल सकती है।

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