कुरुक्षेत्र, हरियाणा राज्य में स्थित एक पवित्र स्थल है जिसे महाभारत के युद्ध का केंद्र और धर्मभूमि कहा जाता है। यह वही भूमि है जहाँ कौरवों और पांडवों
जानिए कुरुक्षेत्र की महाभारत भूमि और धर्म युद्ध की व्याख्या
कुरुक्षेत्र, हरियाणा राज्य में स्थित एक पवित्र स्थल है जिसे महाभारत के युद्ध का केंद्र और धर्मभूमि कहा जाता है। यह वही भूमि है जहाँ कौरवों और पांडवों के बीच 18 दिनों का ऐतिहासिक युद्ध लड़ा गया था, और जहाँ भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को भगवद्गीता का उपदेश दिया।
कुरुक्षेत्र: एक ऐतिहासिक और आध्यात्मिक भूमि
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नाम की उत्पत्ति:
कुरुक्षेत्र का नाम राजा "कुरु" के नाम पर पड़ा, जो चंद्रवंशी वंश के एक महान राजा थे। यह भूमि उनकी तपस्या और पुण्य से पवित्र मानी जाती है। -
धार्मिक महत्व:
इसे “धर्मक्षेत्र” कहा गया है क्योंकि यहाँ धर्म और अधर्म के बीच निर्णायक युद्ध हुआ और धर्म के सिद्धांतों की स्थापना की गई। -
महाभारत युद्ध का स्थल:
युद्ध का मैदान लगभग 48 कोस (लगभग 140 किमी) क्षेत्र में फैला हुआ था, जिसमें अनेक तीर्थ स्थल और सरोवर सम्मिलित हैं। -
भगवद्गीता का जन्मस्थान:
यही वह भूमि है जहाँ अर्जुन के मोह और भ्रम को दूर करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने उसे गीता का ज्ञान दिया।
धर्म युद्ध की व्याख्या:
“धर्म युद्ध” का अर्थ है – ऐसा युद्ध जो न्याय, सत्य, और कर्तव्य के लिए लड़ा जाए, न कि लोभ, क्रोध या वासना से प्रेरित होकर।
धर्म युद्ध के मूल तत्व:
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नीति और मर्यादा का पालन:
युद्ध में भी नियम होते हैं — जैसे रात्रि में युद्ध न करना, निहत्थे पर वार न करना, स्त्रियों या शरणागतों पर आक्रमण न करना। -
धर्म के लिए युद्ध:
जब अधर्म बढ़ जाए, निर्दोषों पर अत्याचार हो, और संवाद असफल हो जाए, तब धर्म की रक्षा हेतु युद्ध उचित माना गया है। -
अर्जुन का भ्रम और समाधान:
अर्जुन युद्ध के पहले मोह में पड़ गए — “मैं अपने ही बंधुओं को कैसे मारूँ?” — तब श्रीकृष्ण ने उन्हें कर्तव्य और आत्मा के अमरत्व का ज्ञान देकर कर्मयोग की शिक्षा दी। -
गीता में धर्म युद्ध का संदेश:
"कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन…" — अर्थात्, कर्म करो लेकिन फल की चिंता मत करो। यही धर्म युद्ध का सार है। -
अधर्म के विरुद्ध खड़ा होना ही धर्म है:
शांत रहकर अन्याय को सहना भी पाप है। धर्म युद्ध में संकोच नहीं, संकल्प चाहिए।
आज का कुरुक्षेत्र:
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ब्रह्मसरोवर और सन्निहित सरोवर जैसे तीर्थ आज भी यहाँ स्थित हैं, जहाँ श्रद्धालु स्नान करते हैं।
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गीता उपदेश स्थल पर अब एक भव्य गीता स्मारक बना है, जहाँ श्रीकृष्ण और अर्जुन की विशाल प्रतिमा स्थापित है।
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कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय और महाभारत थीम पार्क भी यहाँ स्थित हैं, जो ज्ञान और संस्कृति के केंद्र हैं।
रोचक तथ्य: कुरुक्षेत्र और धर्म युद्ध
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कुरुक्षेत्र का उल्लेख ऋग्वेद और महाभारत में भी आता है, जो इसे भारत की सबसे प्राचीन धार्मिक स्थलों में से एक बनाता है।
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महाभारत युद्ध केवल एक भौतिक संघर्ष नहीं था, बल्कि यह धर्म बनाम अधर्म का गूढ़ दर्शन प्रस्तुत करता है।
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भगवद्गीता का उपदेश युद्धभूमि में दिया गया, जो विश्व का एकमात्र ऐसा आध्यात्मिक ग्रंथ है जो युद्ध की पृष्ठभूमि में रचा गया।
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गीता में कुल 700 श्लोक हैं, जो श्रीकृष्ण और अर्जुन के संवाद के रूप में प्रस्तुत हैं।
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कुरुक्षेत्र को “भगवान कृष्ण का उपदेश-क्षेत्र” भी कहा जाता है, और यहाँ हर साल अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव आयोजित होता है।
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कुरुक्षेत्र क्षेत्र में लगभग 360 से अधिक तीर्थस्थल हैं, जिनमें कई सरोवर, मंदिर और आश्रम हैं जो महाभारत काल से जुड़े हैं।
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'ज्योतिसर' वह स्थान है जहाँ श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। आज यहाँ गीता का भव्य संगमरमर मंदिर स्थित है।
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कहा जाता है कि महाभारत युद्ध में लगभग 18 अक्षौहिणी सेनाएँ (लगभग 40 लाख सैनिक) शामिल थीं।
FAQ
प्रश्न: कुरुक्षेत्र किस राज्य में स्थित है?
उत्तर: कुरुक्षेत्र हरियाणा राज्य में स्थित है।
प्रश्न: कुरुक्षेत्र को धर्मक्षेत्र क्यों कहा जाता है?
उत्तर: क्योंकि यहाँ धर्म और अधर्म के बीच महाभारत का युद्ध हुआ, और श्रीकृष्ण ने धर्म का गूढ़ ज्ञान अर्जुन को दिया।
प्रश्न: धर्म युद्ध का क्या अर्थ है?
उत्तर: ऐसा युद्ध जो अन्याय, अधर्म और अत्याचार के विरुद्ध न्याय, सत्य और कर्तव्य की रक्षा के लिए लड़ा जाए।
प्रश्न: क्या धर्म युद्ध में भी नैतिकता के नियम होते हैं?
उत्तर: हाँ, जैसे निहत्थे पर वार न करना, स्त्रियों और वृद्धों को क्षति न पहुँचाना, और रात्रि में युद्ध न करना आदि।
प्रश्न: अर्जुन क्यों युद्ध करने से हिचक रहे थे?
उत्तर: क्योंकि उन्हें अपने बंधु-बांधवों, गुरुजनों और सगे-सम्बंधियों के विरुद्ध हथियार उठाना पड़ा, जिससे वे मोह में पड़ गए।
प्रश्न: गीता का मूल संदेश क्या है?
उत्तर: कर्म करते रहो, फल की चिंता मत करो; आत्मा अमर है; और धर्म के मार्ग पर अडिग रहो।
प्रश्न: क्या आज के युग में भी धर्म युद्ध की प्रासंगिकता है?
उत्तर: हाँ, अन्याय और अधर्म के विरुद्ध खड़ा होना, सत्य और कर्तव्य का पालन करना आज भी धर्म युद्ध का रूप है।
भगवद्गीता के महत्वपूर्ण श्लोक और अर्थ
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कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
भावार्थ: तेरा अधिकार केवल कर्म करने में है, फल में नहीं। -
न जायते म्रियते वा कदाचित्।
भावार्थ: आत्मा कभी पैदा नहीं होती और न ही कभी मरती है। -
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
भावार्थ: जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब मैं अवतार लेता हूँ। -
श्रेयान् स्वधर्मो विगुणः परधर्मात् स्वनुष्ठितात्।
भावार्थ: अपने धर्म का पालन दोषयुक्त होकर भी श्रेष्ठ है, दूसरों का धर्म अपनाना घातक है। -
न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत्।
भावार्थ: कोई भी व्यक्ति एक क्षण के लिए भी बिना कर्म किए नहीं रह सकता।
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