चार्ल्स डार्विन (Charles Darwin) ने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ "ऑन द ओरिजिन ऑफ स्पीशीज़" (On the Origin of Species) में विकासवाद (Evolution) और प्राकृतिक चयन
चार्ल्स डार्विन का सिद्धांत : कैसे बदले जीव लाखों सालों में? प्राकृतिक चयन कैसे काम करता है? जिराफ, तितलियों और मच्छरों की असली कहानी
चार्ल्स डार्विन (Charles Darwin) ने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ "ऑन द ओरिजिन ऑफ स्पीशीज़" (On the Origin of Species) में विकासवाद (Evolution) और प्राकृतिक चयन (Natural Selection) का सिद्धांत प्रस्तुत किया। इस सिद्धांत के अनुसार, जीवों की विभिन्न प्रजातियाँ समय के साथ धीरे-धीरे परिवर्तित होती हैं और जो जीव अपने वातावरण में सबसे अच्छी तरह अनुकूलित होते हैं, वे ही जीवित रहते हैं और अपनी संतति को आगे बढ़ाते हैं।
विकासवाद (Evolution) का सिद्धांत
विकासवाद के अनुसार, सभी जीवों की उत्पत्ति एक सामान्य पूर्वज से हुई है। समय के साथ, वातावरण में बदलाव और अनुवांशिक विविधताओं (Genetic Variations) के कारण नए जीवों का विकास हुआ।
मुख्य तत्व:
समान पूर्वज (Common Ancestor) - सभी जीवधारियों का एक ही पूर्वज रहा है।
क्रमिक परिवर्तन (Gradual Changes) - जीवों में धीरे-धीरे परिवर्तन होते हैं।
अनुकूलन (Adaptation) - जो जीव अपने पर्यावरण के अनुसार ढल जाते हैं, वे जीवित रहते हैं।
प्राकृतिक चयन (Natural Selection) का सिद्धांत
प्राकृतिक चयन का अर्थ है कि प्रकृति स्वयं यह तय करती है कि कौन से जीव जीवित रहेंगे और कौन विलुप्त हो जाएंगे। यह चार मुख्य सिद्धांतों पर आधारित है:
परिस्थिति के अनुसार भिन्नता (Variation) - जीवों में कुछ प्राकृतिक भिन्नताएँ होती हैं।
जीवों की अधिक संख्या में उत्पत्ति (Overproduction) - जीव अपने जीवनकाल में अधिक संतानों को जन्म देते हैं।
संघर्ष (Struggle for Existence) - सीमित संसाधनों के कारण जीवों में जीवित रहने के लिए प्रतिस्पर्धा होती है।
योग्यता के अनुसार उत्तरजीविता (Survival of the Fittest) - जो जीव सबसे अधिक अनुकूलित होते हैं, वे जीवित रहते हैं और आगे प्रजनन करते हैं।
गिरगिट और प्राकृतिक चयन का उदाहरण
गिरगिट का रंग बदलने की क्षमता प्राकृतिक चयन का एक अच्छा उदाहरण है। विभिन्न वातावरणों में गिरगिट अपने रंग को बदलकर अपने शिकारी से बच सकते हैं। यह विशेषता प्राकृतिक चयन की प्रक्रिया से विकसित हुई है।
जिराफ का गला और विकासवाद
डार्विन के अनुसार, प्रारंभिक जिराफों की गर्दन छोटी थी, लेकिन भोजन की खोज में ऊँचे पेड़ों की पत्तियाँ खाने के लिए जिन जिराफों की गर्दन लंबी थी, वे अधिक भोजन प्राप्त कर पाए और जीवित रहे। समय के साथ उनकी लंबी गर्दन वाली विशेषता पीढ़ी दर पीढ़ी विकसित होती गई।
म्यूटेशन और कोशिकीय स्तर पर विकास
म्यूटेशन (Mutation) अनुवांशिक परिवर्तन होते हैं जो जीवों के डीएनए (DNA) में अचानक होते हैं। ये परिवर्तन कभी-कभी जीव के अनुकूल होते हैं और उसे अपने वातावरण में जीवित रहने में सहायता करते हैं। उदाहरण के लिए, जीवाणु (Bacteria) में प्रतिरोधी जीन (Resistant Genes) उत्पन्न हो सकते हैं, जिससे वे एंटीबायोटिक्स के प्रभाव से बच सकते हैं।
पक्षियों के चोंच का विकास - गैलापागोस द्वीप समूह का अध्ययन
डार्विन ने गैलापागोस द्वीप समूह पर विभिन्न प्रकार के फिंच पक्षियों (Finches) का अध्ययन किया और पाया कि अलग-अलग द्वीपों पर रहने वाले पक्षियों की चोंच उनके भोजन के प्रकार के अनुसार विकसित हो गई। इस अध्ययन से यह स्पष्ट हुआ कि जीव अपने पर्यावरण के अनुसार अनुकूलित होते हैं।
एककोशिकीय (Unicellular) और बहुकोशिकीय (Multicellular) जीवों का विकास
जीवन की उत्पत्ति सबसे पहले एककोशिकीय जीवों (Unicellular Organisms) से हुई, जैसे बैक्टीरिया और अमीबा। लाखों वर्षों की विकास प्रक्रिया के बाद, इन जीवों के समूहों से बहुकोशिकीय जीवों (Multicellular Organisms) का विकास हुआ।
उदाहरण:
एककोशिकीय जीव - अमीबा, परमीशियम, बैक्टीरिया
बहुकोशिकीय जीव - मानव, पेड़-पौधे, जानवर
आधुनिक विकासवादी सिद्धांत (Modern Evolutionary Theory)
आज के समय में विकासवाद को समझने में आनुवांशिकता (Genetics), डीएनए अनुक्रमण (DNA Sequencing) और कृत्रिम चयन (Artificial Selection) का भी महत्वपूर्ण योगदान है। वैज्ञानिकों का मानना है कि प्राकृतिक चयन और आनुवंशिक विविधता जीवों के विकास में निर्णायक भूमिका निभाते हैं।
डार्विन के प्राकृतिक चयन (Natural Selection) और विकास सिद्धांत (Theory of Evolution) के कुछ उदाहरण
उदाहरण 1: जिराफ की लंबी गर्दन कैसे विकसित हुई?
बहुत पहले, जिराफों की गर्दन छोटी हुआ करती थी, और वे आसानी से घास और छोटे पेड़ों की पत्तियाँ खा सकते थे। लेकिन समय के साथ, घास की मात्रा कम होने लगी और खाने के लिए सिर्फ ऊँचे पेड़ों की पत्तियाँ बचीं।
👉 समस्या: छोटे गर्दन वाले जिराफ ऊँची टहनियों तक नहीं पहुँच पाते थे, जिससे उन्हें कम खाना मिलता था और वे धीरे-धीरे कमजोर होकर मरने लगे।
👉 हल: जिन जिराफों की गर्दन थोड़ी लंबी थी, वे ऊँचे पेड़ों से पत्तियाँ खा सकते थे। वे ज्यादा ताकतवर रहे, ज्यादा जीवित रहे और ज्यादा संतान पैदा कर सके।
👉 नतीजा: पीढ़ी-दर-पीढ़ी, लंबे गर्दन वाले जिराफ ज्यादा संख्या में जन्म लेने लगे, और छोटे गर्दन वाले जिराफ खत्म हो गए। इसलिए, आज हम सभी जिराफों को लंबी गर्दन वाला देखते हैं।
उदाहरण 2: कीटनाशक और मच्छर (पारिस्थितिक विकास)
किसी गाँव में बहुत सारे मच्छर थे, और लोग उन्हें मारने के लिए कीटनाशक (pesticide) का इस्तेमाल करने लगे। शुरुआत में, अधिकतर मच्छर मर गए, लेकिन कुछ मच्छर बच गए, क्योंकि उनमें कीटनाशक से लड़ने की प्राकृतिक क्षमता थी।
👉 समस्या: जो मच्छर कीटनाशक से नहीं मरते थे, वे ही बचकर आगे संतान पैदा करने लगे।
👉 हल: धीरे-धीरे, नई पीढ़ी के मच्छर भी कीटनाशकों के प्रति प्रतिरोधी (resistant) होते गए।
👉 नतीजा: अब पहले वाले कीटनाशक का असर कम हो गया, और मच्छरों की एक नई मजबूत पीढ़ी विकसित हो गई। यही कारण है कि हमें बार-बार नए तरह के कीटनाशक बनाने पड़ते हैं।
उदाहरण 3: काली और सफेद तितलियाँ (औद्योगिक क्रांति का प्रभाव)
👉 पहले की स्थिति:
100 साल पहले इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति (Industrial Revolution) से पहले, पेड़ों की छाल हल्के रंग की थी। सफेद तितलियाँ इन पेड़ों पर आसानी से छिप जाती थीं, जबकि काली तितलियाँ जल्दी दिख जाती थीं और पक्षी उन्हें खा लेते थे। इसलिए, सफेद तितलियाँ ज्यादा संख्या में थीं।
👉 परिवर्तन:
औद्योगिक क्रांति के बाद, फैक्ट्रियों से निकलने वाले धुएँ और कालिख (soot) के कारण पेड़ों की छाल काली हो गई। अब काली तितलियाँ आसानी से छिप सकती थीं, जबकि सफेद तितलियाँ ज्यादा दिखने लगीं और पक्षियों का शिकार बन गईं।
👉 नतीजा:
धीरे-धीरे सफेद तितलियों की संख्या घट गई और काली तितलियाँ ज्यादा संख्या में बचने लगीं। इस तरह, प्राकृतिक चयन के कारण पर्यावरण के अनुसार जीवों के रंग और गुण बदलते गए।
उदाहरण 4: इंसानों में त्वचा का रंग (सूरज की रोशनी का प्रभाव)
👉 उत्तर में रहने वाले लोग (जैसे यूरोप में):
यहाँ सूरज की रोशनी कम होती है, इसलिए शरीर में विटामिन D बनाने के लिए हल्की त्वचा विकसित हुई, जिससे ज्यादा धूप अवशोषित हो सके।
👉 गर्म देशों में रहने वाले लोग (जैसे अफ्रीका, भारत):
यहाँ सूरज की रोशनी बहुत तेज होती है, इसलिए त्वचा में ज्यादा मेलेनिन (Melanin) विकसित हुआ, जिससे त्वचा गहरी और काली हो गई। इससे सूरज की हानिकारक किरणों से सुरक्षा मिलती है।
👉 नतीजा:
समय के साथ, अलग-अलग जगहों के लोगों की त्वचा का रंग उनके वातावरण के अनुसार बदल गया। यह भी प्राकृतिक चयन और विकास का उदाहरण है।
चार्ल्स डार्विन के "विकास सिद्धांत" (Theory of Evolution) और "प्राकृतिक चयन" (Natural Selection) को समझने के लिए एक सरल और यथार्थवादी उदाहरण देखते हैं।
उदाहरण: खरगोशों की आबादी में बदलाव
मान लीजिए कि एक बड़े जंगल में बहुत सारे खरगोश रहते हैं। इन खरगोशों के दो प्रकार होते हैं:
- कुछ सफेद रंग के होते हैं (जो बर्फीले इलाकों में आसानी से छिप सकते हैं, लेकिन घास वाले जंगल में जल्दी दिखाई पड़ते हैं)।
- कुछ भूरे रंग के होते हैं (जो मिट्टी और घास में अच्छी तरह छिप सकते हैं)।
अब, इस जंगल में कई शिकारी (जैसे लोमड़ी और बाज) रहते हैं, जो खरगोशों का शिकार करते हैं।
प्राकृतिक चयन कैसे काम करता है?
👉 पहला चरण – बदलाव (Variation):
प्राकृतिक रूप से, खरगोशों में रंग का अंतर होता है—कुछ सफेद होते हैं, कुछ भूरे। यह अंतर उनके जीन (genes) के कारण होता है।
👉 दूसरा चरण – संघर्ष (Struggle for Survival):
चूंकि जंगल हरा-भरा है, सफेद खरगोश दूर से ही शिकारी को नजर आ जाते हैं, जबकि भूरे खरगोश आसानी से घास और मिट्टी में छिप जाते हैं।
👉 तीसरा चरण – सर्वाइवल ऑफ द फिटेस्ट (Survival of the Fittest):
शिकारी अधिकतर सफेद खरगोशों को पकड़ लेते हैं, क्योंकि वे आसानी से दिख जाते हैं। वहीं, भूरे खरगोश बच जाते हैं और ज्यादा संख्या में प्रजनन (reproduce) करते हैं।
👉 चौथा चरण – अनुवांशिक परिवर्तन (Genetic Change):
कई पीढ़ियों के बाद, जंगल में अधिकतर खरगोश भूरे रंग के हो जाते हैं, क्योंकि सफेद खरगोशों की संख्या धीरे-धीरे कम हो जाती है। अब यह नया गुण (भूरा रंग) अगली पीढ़ियों में लगातार आता जाता है।
क्या इंसान सच में बंदर से विकसित हुआ? विकास सिद्धांत की वैज्ञानिक सच्चाई
डार्विन के विकासवाद (Theory of Evolution) के अनुसार, इंसान बंदर से नहीं बल्कि एक समान पूर्वज (Common Ancestor) से विकसित हुआ है। यह एक आम गलतफहमी है कि इंसान सीधे बंदरों से उत्पन्न हुआ। असल में, इंसानों और आधुनिक बंदरों (जैसे चिंपांज़ी, गोरिल्ला) का एक साझा पूर्वज था, जो लाखों साल पहले पृथ्वी पर था।
विकास सिद्धांत की सच्चाई
साझा पूर्वज की अवधारणा
- चार्ल्स डार्विन ने 1859 में "On the Origin of Species" किताब में यह बताया कि जीवों का विकास प्राकृतिक चयन (Natural Selection) के जरिए होता है।
- वैज्ञानिक शोध बताते हैं कि लगभग 60-70 लाख साल पहले इंसानों और चिंपांज़ियों का साझा पूर्वज था।
- इसके बाद दोनों प्रजातियाँ अलग-अलग दिशाओं में विकसित हुईं—एक शाखा आधुनिक इंसान (होमो सेपियन्स) बनी, और दूसरी शाखा चिंपांज़ी, गोरिल्ला आदि के रूप में आगे बढ़ी।
होमो सेपियन्स का विकास
- इंसानों का विकास कई चरणों में हुआ, जिसमें प्रमुख प्रजातियाँ थीं:
- होमो हैबिलिस (2.4 मिलियन साल पहले)
- होमो इरेक्टस (1.9 मिलियन साल पहले)
- होमो निएंडरथलेंसिस (400,000 साल पहले)
- होमो सेपियन्स (300,000 साल पहले) - यह आधुनिक इंसान की प्रजाति है।
- इंसानों का विकास कई चरणों में हुआ, जिसमें प्रमुख प्रजातियाँ थीं:
डीएनए और आनुवंशिकी (Genetics) प्रमाण
- इंसान और चिंपांज़ी का डीएनए 98-99% तक समान है, जो यह दर्शाता है कि दोनों एक ही पूर्वज से आए हैं।
- जीवाश्म (Fossils) के प्रमाण भी इस सिद्धांत की पुष्टि करते हैं।
क्या मच्छर कभी खत्म होंगे? जानें प्राकृतिक चयन और उनकी सुपर पावर
मच्छर पृथ्वी पर सबसे पुराने और सबसे सफल जीवों में से एक हैं। वे लाखों सालों से अस्तित्व में हैं और अब तक विलुप्त नहीं हुए। आइए जानें कि क्या मच्छर कभी खत्म होंगे? और उनके अस्तित्व के पीछे की प्राकृतिक चयन (Natural Selection) और उनकी "सुपर पावर" क्या हैं।
मच्छरों की सुपर पावर
तेज़ प्रजनन दर 🦟
- मच्छर बहुत तेजी से प्रजनन करते हैं। एक मादा मच्छर एक बार में सैकड़ों अंडे दे सकती है, जो कुछ ही दिनों में विकसित हो जाते हैं।
- इतनी तेज़ी से संख्या बढ़ने के कारण इन्हें खत्म करना मुश्किल हो जाता है।
अनुकूलन क्षमता (Adaptability)
- मच्छर बदलते पर्यावरण के हिसाब से खुद को ढालने में सक्षम होते हैं।
- वे प्रदूषित पानी, गंदगी और अलग-अलग जलवायु परिस्थितियों में भी जीवित रह सकते हैं।
रोग प्रतिरोधक क्षमता (Resistance)
- मच्छर धीरे-धीरे कीटनाशकों (Insecticides) के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लेते हैं।
- वैज्ञानिक नई दवाएं और रसायन बनाते हैं, लेकिन मच्छर उनमें भी सर्वाइव करने के तरीके खोज लेते हैं।
रोग फैलाने की क्षमता
- मच्छर सिर्फ खून नहीं चूसते, बल्कि वे मलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया और जीका वायरस जैसी बीमारियाँ भी फैलाते हैं।
- यही कारण है कि वे दुनिया के कई हिस्सों में इंसानों के लिए सबसे ख़तरनाक कीट बने हुए हैं।
क्या मच्छर कभी खत्म होंगे?
प्राकृतिक संतुलन (Ecosystem Role)
- मच्छर खाद्य श्रृंखला (Food Chain) का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। वे मेंढ़क, मछली, पक्षियों और अन्य कीटों का भोजन बनते हैं।
- अगर मच्छर पूरी तरह से खत्म हो जाएं, तो कई प्रजातियाँ प्रभावित हो सकती हैं।
वैज्ञानिक प्रयास
- जेनेटिक टेक्नोलॉजी से वैज्ञानिक ऐसे मच्छर विकसित कर रहे हैं जो प्रजनन नहीं कर सकते, जिससे उनकी आबादी नियंत्रित की जा सके।
- कुछ प्रयोगों में ऐसे मच्छर छोड़े गए हैं, जिनकी संतानें वयस्क होने से पहले ही मर जाती हैं।
अंततः मच्छर खत्म होंगे या नहीं?
- मच्छरों को पूरी तरह खत्म करना बहुत मुश्किल है, लेकिन उनकी संख्या को नियंत्रित करना संभव है।
- जलभराव रोककर, कीटनाशकों का सही उपयोग करके और जेनेटिक टेक्नोलॉजी का सहारा लेकर उनकी आबादी को सीमित किया जा सकता है।
क्यों बदलता है जीवों का रंग? पढ़ें प्राकृतिक चयन के पीछे की साइंस
प्रकृति में जीवों का रंग समय के साथ बदलता है, और इसके पीछे प्राकृतिक चयन (Natural Selection) और अनुकूलन (Adaptation) की गहरी वैज्ञानिक वजहें होती हैं। यह बदलाव जीवों को पर्यावरण में बेहतर सर्वाइव करने, शिकारियों से बचने और प्रजनन में मदद करता है। आइए जानें, यह प्रक्रिया कैसे काम करती है!
1. छिपने और सुरक्षा (Camouflage & Survival)
🌿 कैमाफ्लाज (Camouflage) जीवों के रंग बदलने का सबसे बड़ा कारण है। इसका उद्देश्य शिकारियों से बचना या शिकार को पकड़ने में मदद करना होता है।
- उदाहरण:
- गिरगिट (Chameleon) और कटलफिश (Cuttlefish) अपने शरीर का रंग बदलकर दुश्मनों से बचते हैं।
- आर्कटिक में रहने वाले जानवर (जैसे ध्रुवीय भालू और आर्कटिक लोमड़ी) सफेद रंग के होते हैं, जिससे वे बर्फ में छिप सकते हैं।
- रेगिस्तानी जानवर, जैसे ऊँट, हल्के रंग के होते हैं ताकि वे रेत में घुलमिल जाएँ।
2. तापमान नियंत्रण (Thermoregulation)
🌞 रंग बदलना शरीर के तापमान को नियंत्रित करने में भी मदद करता है।
- गहरे रंग सूरज की गर्मी को ज्यादा अवशोषित करते हैं, जबकि हल्के रंग इसे परावर्तित कर देते हैं।
- उदाहरण:
- ठंडे क्षेत्रों में रहने वाले जानवर गहरे रंग के हो सकते हैं ताकि वे ज्यादा गर्मी अवशोषित कर सकें।
- कुछ छिपकलियाँ (Lizards) सुबह गहरे रंग की होती हैं ताकि सूरज की गर्मी जल्दी सोख सकें, और दिन में हल्की हो जाती हैं ताकि ज़्यादा गर्म न हों।
3. संचार और प्रजनन (Communication & Mating)
❤️ रंग बदलना कई जीवों के लिए सिग्नल देने का तरीका भी होता है, खासकर प्रजनन (Mating) के समय।
- उदाहरण:
- नर मोर (Peacock) के रंग-बिरंगे पंख मादा को आकर्षित करने के लिए होते हैं।
- कुछ मेंढक और छिपकलियाँ प्रजनन काल में ज्यादा चमकीले रंग के हो जाते हैं।
- कुछ मछलियाँ लड़ाई के समय रंग बदलकर आक्रामकता दिखाती हैं।
4. चेतावनी संकेत (Warning Signals)
⚠️ कुछ जीव अपने रंगों से दूसरों को चेतावनी देते हैं कि वे ज़हरीले या खतरनाक हैं।
- उदाहरण:
- जहर वाली डार्ट मेंढक (Poison Dart Frog) का चमकीला नीला या पीला रंग यह बताता है कि वह जहरीला है।
- मधुमक्खियाँ और ततैया पीले और काले रंग की धारियों वाली होती हैं, जो दुश्मनों को डराती हैं।
- कोरल स्नेक (Coral Snake) और मिल्क स्नेक (Milk Snake) जैसे साँपों में लाल-पीले-कालों का पैटर्न होता है, जिससे शिकारियों को लगता है कि वे ज़हरीले हो सकते हैं।
5. पर्यावरणीय बदलाव (Environmental Changes)
🌍 जब किसी इलाके का वातावरण बदलता है, तो वहाँ रहने वाले जीव भी धीरे-धीरे अपने रंग को बदल सकते हैं।
- उदाहरण:
- औद्योगिक क्रांति का प्रभाव – इंग्लैंड में पेपरड मॉथ (Peppered Moth) नाम की तितली पहले हल्की रंग की होती थी, लेकिन जब कारखानों से निकलने वाले धुएँ ने पेड़ों को काला कर दिया, तो काली तितलियाँ ज्यादा सर्वाइव करने लगीं।
- कुछ प्रवासी पक्षी सर्दियों और गर्मियों में अपने पंखों का रंग बदलते हैं।
(FAQs)
डार्विन का विकासवाद क्या है?
यह सिद्धांत बताता है कि सभी जीव एक समान पूर्वज से विकसित हुए हैं और समय के साथ उनके रूप-रंग में परिवर्तन होता है।प्राकृतिक चयन क्या होता है?
प्राकृतिक चयन वह प्रक्रिया है जिसमें प्रकृति अनुकूल जीवों को जीवित रहने और प्रजनन करने का अवसर देती है।विकासवाद का सबसे अच्छा उदाहरण क्या है?
जिराफ की लंबी गर्दन, पक्षियों की चोंच में विविधता और बैक्टीरिया में एंटीबायोटिक प्रतिरोध।क्या विकासवाद सिद्धांत वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित है?
हां, जीवाश्म अभिलेख, आनुवंशिकी और भ्रूण विज्ञान इसके प्रमाण हैं।क्या विकास एक धीमी या तेज़ प्रक्रिया है?
यह एक धीमी और क्रमिक प्रक्रिया है, जो लाखों वर्षों में होती है। हालांकि, कुछ मामलों में तेज़ी से विकास भी देखा गया है, जैसे बैक्टीरिया में एंटीबायोटिक प्रतिरोध।प्राकृतिक चयन और कृत्रिम चयन में क्या अंतर है?
प्राकृतिक चयन प्रकृति द्वारा संचालित होता है, जबकि कृत्रिम चयन (Artificial Selection) मनुष्यों द्वारा किया जाता है, जैसे कि पालतू जानवरों की प्रजातियाँ विकसित करना।क्या सभी जीव विकास की प्रक्रिया से गुजरते हैं?
हां, सभी जीव विकास की प्रक्रिया से गुजरते हैं, लेकिन विभिन्न दरों पर।क्या विकासवाद और धर्म में कोई टकराव है?
यह विषय विवादास्पद हो सकता है। कुछ धार्मिक मान्यताओं में सृजनवाद (Creationism) को प्राथमिकता दी जाती है, जबकि विज्ञान विकासवाद को मान्यता देता है।क्या मनुष्य का विकास अब भी जारी है?
हां, वैज्ञानिक मानते हैं कि मनुष्य का विकास अब भी जारी है, लेकिन यह बहुत धीमी गति से हो रहा है।क्या डार्विन का सिद्धांत पूर्ण रूप से सही है?
डार्विन का सिद्धांत कई वैज्ञानिक प्रमाणों द्वारा समर्थित है, लेकिन आनुवंशिकी और आधुनिक जीवविज्ञान ने इसे और विस्तारित किया है। आज, वैज्ञानिक "आधुनिक संश्लेषण" (Modern Synthesis) को स्वीकार करते हैं, जो आनुवंशिकी और प्राकृतिक चयन को जोड़ता है।
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