जानिए सांची स्तूप का इतिहास, विशेषता और रहस्य | Know the history, features and mystery of Sanchi Stupa in hindi

सांची में महान स्तूप बौद्ध कला और वास्तुकला के रत्न को दर्शाते हुए सबसे महत्वपूर्ण बौद्ध स्मारकों में से एक है। भारत के मध्य प्रदेश के सांची टाउन में

जानिए सांची स्तूप का इतिहास, विशेषता और रहस्य  

सांची स्तूप भारत के सबसे महत्वपूर्ण बौद्ध स्मारकों में से एक है, जो मध्य प्रदेश के रायसेन जिले में स्थित है। यह प्राचीन भारत की वास्तुकला और बौद्ध धर्म के विकास का अद्भुत उदाहरण है। यह स्तूप सम्राट अशोक द्वारा तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में बनवाया गया था और कालांतर में इसे कई अन्य राजाओं ने विकसित किया।

                                       सांची स्तूप का इतिहास  |   History of Sanchi Stupa

सांची स्तूप को उसकी अद्वितीय वास्तुकला, भव्यता और ऐतिहासिक महत्व के कारण यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया है। इसे केवल एक धार्मिक स्थल ही नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और रहस्यमयी संरचना के रूप में भी देखा जाता है।

सांची स्तूप का इतिहास

1. मौर्यकाल और सम्राट अशोक

सांची स्तूप का निर्माण सम्राट अशोक (268–232 ईसा पूर्व) के शासनकाल में हुआ। अशोक, जिन्होंने कलिंग युद्ध के बाद बौद्ध धर्म को अपनाया था, ने बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए कई स्तूपों का निर्माण करवाया।

सांची स्तूप उन्हीं स्तूपों में सबसे महत्वपूर्ण है। इसे गौतम बुद्ध के अवशेषों को संरक्षित करने और बौद्ध धर्म के प्रतीक के रूप में बनाया गया था।

2. शुंग और सातवाहन वंश का योगदान

मौर्य वंश के बाद शुंग वंश (185-75 ईसा पूर्व) ने इस स्तूप का पुनर्निर्माण किया और इसका विस्तार किया। इस काल में स्तूप को पत्थरों से ढका गया और इसकी ऊँचाई बढ़ाई गई।

सातवाहन शासकों (पहली-दूसरी शताब्दी ईस्वी) ने चार भव्य तोरणद्वारों (गेटवे) का निर्माण कराया, जिन पर बौद्ध कथाओं और जातक कथाओं को दर्शाने वाली उत्कृष्ट नक्काशी की गई।

3. गुप्त काल और मध्यकाल

गुप्त साम्राज्य (चौथी-पांचवीं शताब्दी ईस्वी) के दौरान स्तूप को और अधिक सुसज्जित किया गया। लेकिन मध्यकाल में यह स्थल उपेक्षित हो गया और धीरे-धीरे जंगलों में खो गया।

4. ब्रिटिश युग में पुनर्खोज

1818 में, जनरल टेलर नामक एक ब्रिटिश अधिकारी ने सांची स्तूप को पुनः खोजा। इसके बाद 1912-1919 में प्रसिद्ध पुरातत्वविद् सर जॉन मार्शल ने इसका पुनरुद्धार किया।

इसे कब बनाया गया था: तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में कमीशन, विस्तार / परिवर्धन / बहाली कार्य / विभिन्न अवधियों में किए गए

इसे किसने बनवाया: मौर्य वंश के सम्राट अशोक द्वारा कमीशन किया गया

यह कहाँ स्थित है: भारत के मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से 46 किमी उत्तर-पूर्व में स्थित है

स्थापत्य शैली: बौद्ध कला और वास्तुकला

यात्रा का समय: सूर्योदय से सूर्यास्त तक


कैसे पहुंचा जाये: भोपाल के लिए हवाई या रेल द्वारा जो भारत के कई अन्य शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है और फिर विभिन्न टूर ऑपरेटरों द्वारा प्रदान की गई बस, कैब और निजी कारों द्वारा सांची के लिए सड़क मार्ग से। सांची तक विदिशा (10 किमी) और इंदौर (232 किमी) से सड़क मार्ग से भी पहुंचा जा सकता है।

सांची में महान स्तूप बौद्ध कला और वास्तुकला के रत्न को दर्शाते हुए सबसे महत्वपूर्ण बौद्ध स्मारकों में से एक है। भारत के मध्य प्रदेश के सांची टाउन में स्थित, यह स्तूप भारत की सबसे पुरानी पत्थर की संरचना है जिसे मौर्य काल के दौरान बनाया गया था।

मूल रूप से सम्राट अशोक द्वारा तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में 12.2816.46 मीटर (54.0 फीट) की ऊंचाई वाले इस विशाल गोलार्द्ध के गुंबद में एक केंद्रीय कक्ष है जहां भगवान बुद्ध के अवशेष रखे गए हैं। चार दिशाओं का सामना करने वाले चार सजावटी प्रवेश द्वार और स्तूप के चारों ओर एक कटघरा बाद में पहली शताब्दी ईसा पूर्व में जोड़ा गया था।

                                          सांची स्तूप का इतिहास  |   History of Sanchi Stupa

एक स्तूप का एक विशिष्ट उदाहरण और तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से बारहवीं शताब्दी ईस्वी तक बौद्ध कला और मूर्तिकला के विकास का एक उत्कृष्ट उदाहरण, सांची स्तूप दुनिया भर से सैकड़ों आगंतुकों को आकर्षित करता है। 1989 से यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल के रूप में सूचीबद्ध, इसे मध्य भारत के सर्वश्रेष्ठ संरक्षित प्राचीन स्तूपों में गिना जाता है।

सांची स्तूप की विशेषताएँ

1. वास्तुकला

सांची स्तूप की वास्तुकला इसे अनोखा बनाती है। इसके मुख्य भाग इस प्रकार हैं:

  • मुख्य स्तूप:

    • यह एक अर्धगोलाकार संरचना है, जिसे 'अंड' कहा जाता है।
    • इसका व्यास लगभग 36.5 मीटर और ऊँचाई 16.4 मीटर है।
    • स्तूप में बुद्ध के अवशेष रखे गए हैं।
  • हरमिका:

    • यह स्तूप के शीर्ष पर एक छोटी सी रेलिंग युक्त संरचना है, जो स्वर्ग के प्रतीक के रूप में मानी जाती है।
  • चैत्य वृक्ष (छत्र):

    • यह हरमिका के ऊपर स्थित एक छत्र (छाता) है, जो बुद्ध के सम्मान और ज्ञान का प्रतीक है।
  • तोरणद्वार (गेटवे):

    • चार भव्य तोरणद्वार उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम दिशा में बने हुए हैं।
    • इन पर बुद्ध के जीवन, जातक कथाओं और बौद्ध धर्म की शिक्षाओं को दर्शाने वाली उत्कृष्ट नक्काशी है।

2. नक्काशी और मूर्तिकला

सांची स्तूप की नक्काशी अद्भुत है। इसमें बुद्ध की कहानियों, उनके जीवन के महत्वपूर्ण क्षणों और बौद्ध धर्म से जुड़ी धार्मिक घटनाओं को चित्रित किया गया है।

उदाहरण:

  • जातक कथाओं में बुद्ध के पिछले जन्मों की कहानियाँ बताई गई हैं।
  • अशोक की धर्म यात्राओं और बौद्ध भिक्षुओं की गतिविधियों का भी चित्रण किया गया है।

सांची स्तूप से जुड़े रहस्य और मिथक

1. एलियंस और सांची स्तूप का संबंध

कुछ शोधकर्ताओं और षड्यंत्र सिद्धांतकारों का मानना है कि सांची स्तूप का डिजाइन और ऊर्जा संरचना ऐसी है, जो इसे एक 'कोस्मिक एनर्जी सेंटर' बनाती है।

  • कुछ लोगों का दावा है कि सांची स्तूप के हरमिका और तोरणद्वार में अद्वितीय जियोमेट्रिकल पैटर्न हैं, जो एलियंस द्वारा दिए गए ज्ञान पर आधारित हो सकते हैं।
  • कुछ षड्यंत्रकारी मानते हैं कि इसका गोलाकार आकार और ऊर्जा संरचना प्राचीन उन्नत सभ्यता या अंतरिक्ष प्राणियों के प्रभाव को दर्शाती है।
  • हालांकि, वैज्ञानिक प्रमाण इन दावों की पुष्टि नहीं करते हैं।

2. सांची स्तूप और गुप्त शक्ति

कई आध्यात्मिक साधक मानते हैं कि सांची स्तूप ध्यान और योग के लिए अत्यधिक ऊर्जा युक्त स्थान है।

  • कुछ लोगों का मानना है कि यहाँ ध्यान करने से सकारात्मक ऊर्जा और आध्यात्मिक शक्तियों की प्राप्ति होती है।
  • कई तांत्रिक और सिद्ध योगियों ने इस स्थान को अपनी साधना स्थली बताया है।

3. छत्र और स्वर्ग से संबंध

बौद्ध धर्म के अनुसार, स्तूप के शीर्ष पर स्थित छत्र 'स्वर्ग' का प्रतीक है और यह देवताओं की ऊर्जा को आकृष्ट करता है।

  • कुछ लोगों का मानना है कि यह एक 'कनेक्शन पॉइंट' है, जहाँ से आध्यात्मिक शक्तियाँ ब्रह्मांडीय ऊर्जा से जुड़ती हैं।
  • हालांकि, ऐतिहासिक रूप से यह केवल श्रद्धा और सम्मान का प्रतीक है।

स्तूप की नींव

सांची में बौद्ध विहार की नींव जिसमें महान सांची स्तूप शामिल है, मौर्य राजवंश के महानतम भारतीय सम्राटों में से एक अशोक द्वारा रखी गई थी, जिन्होंने सी से लगभग पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर शासन किया था। 268 से 232 ईसा पूर्व।

उन्होंने भगवान बुद्ध के नश्वर अवशेषों को पुनर्वितरित करने के बाद यहां स्तूप का निर्माण शुरू किया ताकि बौद्ध धर्म के प्रसार के लिए पूरे भारत में विभिन्न स्थानों पर कई स्तूपों का निर्माण किया जा सके।

वर्तमान गोलार्द्ध की इमारत अशोक द्वारा निर्मित मूल ईंट संरचना के व्यास में दोगुनी है, जिसमें भगवान बुद्ध के अवशेष शामिल हैं।

एक छत्र जो पत्थर से बनी एक छतरी जैसी संरचना है, जो लकड़ी की रेलिंग से घिरी गोलार्द्ध की ईंट की संरचना का ताज है। अशोक की पत्नी और विदिशा के एक व्यापारी की बेटी रानी देवी, जो सांची में पैदा हुई थी, ने इस स्मारक के निर्माण की देखरेख की।

 एक बलुआ पत्थर का स्तंभ, जिसे अशोक द्वारा शिस्म एडिक्ट के साथ अंकित किया गया था, साथ ही गुप्त काल के अलंकृत सर्पिल ब्राह्मी पात्रों के साथ शंख जैसा दिखने वाला शंख, जिसे विद्वानों द्वारा 'शंखलिपि' या 'शेल-स्क्रिप्ट' कहा जाता है, साइट में बनाया गया था। जबकि इसका निचला हिस्सा अभी भी जमीन पर है, ऊपरी हिस्से को एक छत्र के नीचे रखा गया है।
 
                                          सांची स्तूप का इतिहास  |   History of Sanchi Stupa


शुंग काल के दौरान स्तूप का संभावित विनाश और विस्तार

मौर्य साम्राज्य के सेनापति या जनरल, पुष्यमित्र शुंग ने 185 ईसा पूर्व में सेना की समीक्षा के बीच में अंतिम मौर्य सम्राट बृहद्रथ मौर्य को मार डाला और उत्तर भारत में शुंग साम्राज्य की नींव रखी।

अशोक के जन्म और शासन का वर्णन करने वाले 'अशोकवदन' शीर्षक वाले भारतीय संस्कृत-भाषा के पाठ के अनुसार, यह अनुमान लगाया जाता है कि स्तूप संभवतः दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व के दौरान नष्ट हो गया था, एक ऐसी घटना जिसे कई लोग शक्ति के उदय से जुड़े मानते हैं। पुष्यमित्र की। बाद में उनके पुत्र अग्निमित्र ने इसे फिर से बनवाया।

शुंग राजवंश के दौरान, स्तूप का विस्तार, एक अधिक चपटे गुंबद के साथ अपने मूल आकार का लगभग दोगुना, पत्थर के स्लैब का उपयोग करके किया गया था जो पूरी तरह से वास्तविक ईंट स्तूप को कवर करता था। गुंबद के मुकुट के लिए तीन सुपरिम्पोज्ड छत्र जैसी संरचनाएं बनाई गई थीं। यह कानून के पहिये या 'धर्म' का प्रतीक था।

एक ऊँचे गोल ढोल को एक डबल सीढ़ी के माध्यम से पहुँचा जा सकता है, जो गुंबद का आसन बन गया है जिससे कोई भी पवित्र गुंबद की परिक्रमा कर सकता है।


गेटवे का निर्माण और सजावट

जैसा कि शिलालेखों से माना जाता है, संभवत: चार जटिल रूप से सजाए गए तोरण या प्रवेश द्वार जो चारों दिशाओं का सामना कर रहे थे और स्तूप के चारों ओर एक अलंकृत कटघरा बाद में सातवाहन शासन के दौरान पहली शताब्दी ईसा पूर्व में जोड़ा गया था। स्तूप की रेलिंग और द्वार पर विभिन्न डिजाइन और रूपांकनों को उकेरा गया है।

तोरणों की मूर्तियों में जातक की कहानियों में स्पष्ट रूप से भगवान बुद्ध के जीवन को शामिल करने वाली घटनाओं के सजावटी चित्र शामिल हैं। भगवान बुद्ध के प्रतीक के लिए यहां एक पेड़ की तरह निर्जीव आकृतियों का उपयोग किया गया है।

स्तूप के बारे में सबसे महत्वपूर्ण विशेषताओं में से एक यह है कि छवियों के बजाय, भगवान बुद्ध को प्रतीकात्मक रूप से सिंहासन, पहियों और पैरों के निशान जैसे अन्य लोगों के रूप में चित्रित किया गया है।


19वीं सदी में फिर से खोज और बहाली का काम

1818 में, जनरल टेलर नामक एक ब्रिटिश अधिकारी द्वारा सांची स्तूप के अस्तित्व का अंग्रेजी में दस्तावेजीकरण किया गया था। 1881 तक खजाने की खोज करने वालों और शौकिया पुरातत्वविदों ने स्तूप को व्यापक नुकसान पहुंचाया जिसके बाद प्राचीन स्मारक को बहाल करने के लिए उचित कदम उठाए गए।

सर जॉन ह्यूबर्ट मार्शल, जिन्होंने 1902 से 1928 तक 'भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण' (एएसआई) के महानिदेशक के रूप में कार्य किया, ने 1912 और 1919 के बीच स्तूप के जीर्णोद्धार कार्य का पर्यवेक्षण किया।


सांची में महान स्तूप की यात्रा

सांची में बौद्ध कला और मूर्तिकला की प्रतिभा को चित्रित करने वाला यह आकर्षक और विश्व प्रसिद्ध स्तूप और अन्य संरचनाएं राष्ट्रीय और विदेशी पर्यटकों, पुरातत्वविदों और इतिहासकारों सहित वर्ष भर हजारों आगंतुकों का ध्यान आकर्षित करती हैं। यह स्थल सूर्योदय से सूर्यास्त तक खुला रहता है।

चूंकि यहां की जलवायु साल भर गर्म रहती है, इसलिए सांची घूमने का सबसे अच्छा समय सर्दियों के दौरान नवंबर से मार्च तक है। भारतीय नागरिकों और सार्क और बिम्सटेक देशों के आगंतुकों के लिए प्रति व्यक्ति प्रवेश शुल्क रु। 30/- और अन्य के लिए रु. 500/-. 15 वर्ष तक के बच्चों के लिए प्रवेश निःशुल्क है।

सांची स्तूप केवल एक ऐतिहासिक स्मारक ही नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और बौद्ध धर्म की समृद्ध विरासत का प्रतीक है।

  • इसकी वास्तुकला, नक्काशी और आध्यात्मिक महत्व इसे अद्वितीय बनाते हैं।
  • यह स्थल न केवल बौद्ध अनुयायियों के लिए, बल्कि इतिहासकारों, शोधकर्ताओं और पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र है।
  • रहस्य और मिथकों के बावजूद, सांची स्तूप का ऐतिहासिक महत्व अत्यंत प्रामाणिक और महत्वपूर्ण है।

(FAQ)

1. सांची स्तूप कहाँ स्थित है?

सांची स्तूप भारत के मध्य प्रदेश राज्य के रायसेन जिले में स्थित है। यह भोपाल से लगभग 46 किलोमीटर दूर है।

2. सांची स्तूप का निर्माण किसने करवाया था?

सांची स्तूप का निर्माण सम्राट अशोक ने तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में करवाया था। बाद में शुंग, सातवाहन और गुप्त राजवंशों ने इसका विस्तार किया।

3. सांची स्तूप की क्या विशेषताएँ हैं?

  • यह एक अर्धगोलाकार संरचना है जिसमें बुद्ध के अवशेष रखे गए हैं।
  • चार भव्य तोरणद्वार हैं, जिन पर बुद्ध के जीवन और जातक कथाओं की नक्काशी की गई है।
  • शीर्ष पर हरमिका और छत्र स्थित है, जो आध्यात्मिक ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है।

4. सांची स्तूप की वास्तुकला किस शैली की है?

सांची स्तूप भारतीय बौद्ध वास्तुकला का अद्भुत उदाहरण है। इसमें मौर्य, शुंग, सातवाहन और गुप्त काल की स्थापत्य शैली का प्रभाव दिखता है।

5. क्या सांची स्तूप यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है?

हाँ, सांची स्तूप को 1989 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता दी गई थी।

6. सांची स्तूप से जुड़े प्रमुख रहस्य क्या हैं?

  • कुछ लोग मानते हैं कि इसका डिजाइन ब्रह्मांडीय ऊर्जा केंद्र की तरह है।
  • कुछ षड्यंत्रकारी सिद्धांत इसे एलियंस से जोड़ते हैं।
  • आध्यात्मिक साधक इसे ध्यान और योग के लिए ऊर्जावान स्थान मानते हैं।

7. सांची स्तूप का धार्मिक महत्व क्या है?

यह स्तूप बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए पवित्र स्थल है, क्योंकि इसमें भगवान बुद्ध के अवशेष रखे गए हैं और उनके जीवन से जुड़ी शिक्षाओं को दर्शाया गया है।

8. सांची स्तूप तक कैसे पहुँचा जा सकता है?

सांची रेल, सड़क और हवाई मार्ग से आसानी से पहुँचा जा सकता है।

  • निकटतम हवाई अड्डा: राजा भोज एयरपोर्ट, भोपाल (46 किमी)
  • निकटतम रेलवे स्टेशन: सांची रेलवे स्टेशन
  • सड़क मार्ग: भोपाल और विदिशा से बस और टैक्सी उपलब्ध हैं।

9. क्या सांची स्तूप में ध्यान और साधना की जाती है?

हाँ, कई आध्यात्मिक साधक यहाँ ध्यान और साधना के लिए आते हैं। यह स्थान शांति और आध्यात्मिक उन्नति के लिए जाना जाता है।

10. सांची स्तूप के दर्शन के लिए सबसे अच्छा समय कौन सा है?

अक्टूबर से मार्च तक का समय सबसे उपयुक्त है, क्योंकि इस दौरान मौसम सुहावना रहता है।

11. क्या सांची स्तूप के अंदर प्रवेश की अनुमति है?

नहीं, पर्यटकों को स्तूप के अंदर प्रवेश की अनुमति नहीं है, लेकिन वे इसे चारों ओर से देख सकते हैं और इसके आसपास घूम सकते हैं।

12. क्या सांची स्तूप का एलियंस से कोई संबंध है?

कुछ लोग मानते हैं कि सांची स्तूप का निर्माण ब्रह्मांडीय ऊर्जा केंद्र के रूप में हुआ था, लेकिन इसका कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।

13. क्या सांची स्तूप के आसपास अन्य दर्शनीय स्थल हैं?

हाँ, सांची के पास कई अन्य ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल हैं, जैसे:

  • उदयगिरि गुफाएँ
  • भीमबेटका गुफाएँ
  • विदिशा का हेलियोडोरस स्तंभ

14. सांची स्तूप को भारत में इतना महत्वपूर्ण क्यों माना जाता है?

यह भारत की प्राचीन बौद्ध संस्कृति और वास्तुकला का प्रतीक है। साथ ही, यह बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार का ऐतिहासिक केंद्र रहा है।


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