ब्रिटिश शासनकाल में भारत के लिए शासन की रूपरेखा तय करने के उद्देश्य से ब्रिटिश संसद ने कई अधिनियम पारित किए। इनमें प्रमुख भारत सरकार अधिनियम 1858, 190
जानिए क्या था भारत सरकार अधिनियम (Government of India Act)
ब्रिटिश शासनकाल में भारत के लिए शासन की रूपरेखा तय करने के उद्देश्य से ब्रिटिश संसद ने कई अधिनियम पारित किए। इनमें प्रमुख भारत सरकार अधिनियम 1858, 1909, 1919 और 1935 थे। ये अधिनियम भारत की प्रशासनिक व्यवस्था और स्वतंत्रता आंदोलन की दिशा दोनों पर गहरा प्रभाव डालते हैं।
1. भारत सरकार अधिनियम 1858
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1857 के विद्रोह के बाद ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी से भारत का शासन छीन लिया गया।
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भारत सीधे ब्रिटिश क्राउन (रानी विक्टोरिया) के अधीन आ गया।
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गवर्नर जनरल को वायसराय की उपाधि दी गई।
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भारत सचिव (Secretary of State for India) का पद बनाया गया, जो ब्रिटिश संसद के प्रति जिम्मेदार था।
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यह अधिनियम भारत में ब्रिटिश शासन का सीधा आरंभ माना जाता है।
2. भारत सरकार अधिनियम 1909 (मॉर्ले-मिन्टो सुधार)
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इसे Indian Councils Act 1909 भी कहा जाता है।
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भारतीयों को पहली बार विधान परिषदों में सीमित रूप से प्रतिनिधित्व मिला।
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अलग निर्वाचन प्रणाली (Separate Electorates) मुस्लिमों के लिए लागू की गई।
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केंद्रीय विधान परिषद में सदस्यों की संख्या बढ़ाई गई।
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इसका उद्देश्य भारतीयों को कुछ हद तक राजनीतिक अधिकार देना और स्वतंत्रता आंदोलन को शांत करना था।
3. भारत सरकार अधिनियम 1919 (मॉण्टेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार)
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प्रथम विश्व युद्ध के बाद भारतीयों में स्वशासन की मांग तेज़ हो गई थी।
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द्वैध शासन (Dyarchy) लागू किया गया – प्रांतों में विषयों को दो भागों में बांटा गया:
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हस्तांतरित विषय – शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि आदि भारतीय मंत्रियों को सौंपे गए।
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आरक्षित विषय – पुलिस, वित्त, रक्षा आदि अंग्रेज अधिकारियों के पास रहे।
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केंद्रीय और प्रांतीय विधानसभाओं के अधिकार बढ़ाए गए।
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भारतीयों को सरकार में और अधिक शामिल करने की कोशिश की गई।
4. भारत सरकार अधिनियम 1935
यह सबसे बड़ा और विस्तृत अधिनियम था, और स्वतंत्र भारत के संविधान की नींव बना।
मुख्य प्रावधान:
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संघीय ढांचा (Federal Structure): केंद्र और प्रांतों के बीच शक्तियों का विभाजन।
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प्रांतीय स्वशासन: प्रांतों को अधिक स्वायत्तता मिली, मंत्रिपरिषद प्रांतों के शासन में जिम्मेदार बनी।
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द्वैध शासन की समाप्ति: प्रांतों में मंत्रियों को अधिक अधिकार मिले।
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संघीय न्यायालय (Federal Court) और भारतीय रिज़र्व बैंक की स्थापना।
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अलग निर्वाचन प्रणाली का विस्तार: हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, एंग्लो-इंडियन और अन्य समुदायों के लिए अलग निर्वाचन व्यवस्था।
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महिला मताधिकार की शुरुआत: सीमित स्तर पर महिलाओं को वोट का अधिकार मिला।
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संविधान सभा का विचार: भारतीय संविधान निर्माण की दिशा तय की गई।
महत्व
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1935 का अधिनियम इतना व्यापक था कि स्वतंत्र भारत का संविधान काफी हद तक इसी पर आधारित रहा।
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इसमें प्रशासनिक, न्यायिक और वित्तीय ढांचे को आधुनिक रूप दिया गया।
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हालांकि भारतीय नेताओं ने इसे पूरी तरह स्वीकार नहीं किया, लेकिन यह स्वतंत्रता की ओर एक महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ।
संक्षेप में, भारत सरकार अधिनियमों ने भारतीय राजनीति को धीरे-धीरे स्वतंत्रता की ओर अग्रसर किया। इन अधिनियमों के माध्यम से भारतीयों को सत्ता में सीमित भागीदारी दी गई, लेकिन उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन की आग को और अधिक प्रज्वलित कर दिया।
FAQ
प्रश्न 1: भारत सरकार अधिनियम 1858 क्या था?
1858 के अधिनियम के तहत ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन समाप्त कर भारत को ब्रिटिश क्राउन के अधीन कर दिया गया और गवर्नर जनरल को वायसराय बना दिया गया।
प्रश्न 2: भारत सरकार अधिनियम 1909 (मॉर्ले-मिन्टो सुधार) का मुख्य प्रावधान क्या था?
इस अधिनियम से मुसलमानों के लिए अलग निर्वाचन प्रणाली (Separate Electorates) लागू की गई और विधान परिषदों में भारतीयों की भागीदारी थोड़ी बढ़ाई गई।
प्रश्न 3: भारत सरकार अधिनियम 1919 (मॉण्टेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार) में क्या बदलाव किए गए?
इस अधिनियम से प्रांतों में द्वैध शासन (Dyarchy) लागू हुआ, जिसमें कुछ विषय भारतीय मंत्रियों को और कुछ अंग्रेज अधिकारियों के पास रहे।
प्रश्न 4: भारत सरकार अधिनियम 1935 क्यों महत्वपूर्ण था?
यह सबसे बड़ा और विस्तृत अधिनियम था, जिसने प्रांतों को स्वायत्तता दी, संघीय ढांचे की रूपरेखा बनाई और भारतीय संविधान की नींव रखी।
प्रश्न 5: क्या भारत सरकार अधिनियम 1935 से महिलाओं को वोट देने का अधिकार मिला?
हाँ, 1935 के अधिनियम से पहली बार सीमित स्तर पर महिलाओं को मताधिकार मिला।
प्रश्न 6: स्वतंत्र भारत के संविधान पर किस अधिनियम का सबसे अधिक प्रभाव पड़ा?
भारत सरकार अधिनियम 1935 का।
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