भारत में डॉलर की कीमत बढ़ना एक आम आर्थिक घटना है। लेकिन असल कारण क्या होते हैं? आइए इसे बेहद सरल शब्दों और उदाहरणों के साथ समझते हैं।
जानिए डॉलर की कीमत रुपये के मुकाबले क्यों बढ़ती है?
भारत में डॉलर की कीमत बढ़ना एक आम आर्थिक घटना है। लेकिन असल कारण क्या होते हैं? आइए इसे बेहद सरल शब्दों और उदाहरणों के साथ समझते हैं।
1. व्यापार घाटा (Imports ज़्यादा, Exports कम)
भारत जितना बेचता है (Exports), उससे ज़्यादा खरीदता है (Imports) — जैसे तेल, इलेक्ट्रॉनिक्स, मशीनरी आदि।
इन वस्तुओं को खरीदने के लिए डॉलर की ज़रूरत होती है।
जब डॉलर की डिमांड बढ़ती है, तो डॉलर महंगा और रुपया कमजोर हो जाता है।
उदाहरण:
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भारत ने $10 अरब का तेल खरीदा लेकिन केवल $6 अरब का सामान बेचा।
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$4 अरब डॉलर की अतिरिक्त जरूरत → डॉलर की डिमांड बढ़ी → डॉलर महंगा, रुपया कमजोर।
2. विदेशी निवेश का बाहर जाना (Foreign Investment Outflow)
अगर विदेशी निवेशक भारतीय शेयर या बॉन्ड बेचकर पैसा वापस अपने देश भेजते हैं, तो उन्हें डॉलर की जरूरत होती है।
इससे डॉलर की डिमांड बढ़ती है और रुपये की कीमत गिरती है।
उदाहरण:
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किसी विदेशी निवेशक ने ₹100 करोड़ के शेयर बेच दिए → उसे डॉलर चाहिए → डॉलर की मांग बढ़ी → रुपये की कीमत घटी।
वैश्विक स्तर पर डॉलर की मजबूती (Strong US Dollar)
अगर अमेरिकी अर्थव्यवस्था मजबूत है या अमेरिका ब्याज दरें बढ़ाता है, तो पूरी दुनिया डॉलर में निवेश करने लगती है।
इससे डॉलर की कीमत हर देश की मुद्रा के मुकाबले बढ़ती है, जिसमें रुपया भी शामिल है।
उदाहरण:
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अमेरिका ब्याज दर 5% से बढ़ाकर 6% कर दे → दुनिया डॉलर में निवेश करे → डॉलर मजबूत → रुपया कमजोर।
4. कच्चे तेल की कीमत बढ़ना (Crude Oil Prices Rising)
भारत भारी मात्रा में तेल आयात करता है और तेल डॉलर में खरीदा जाता है।
अगर तेल महंगा हो जाए तो भारत को अधिक डॉलर चाहिए → रुपये पर दबाव बढ़ता है।
उदाहरण:
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तेल की कीमत $80 से बढ़कर $120 प्रति बैरल → अधिक डॉलर की जरूरत → रुपये की गिरावट।
5. आर्थिक या राजनीतिक अस्थिरता (Uncertainty in India)
अगर भारत में मुद्रास्फीति बढ़े, वित्तीय घाटा बढ़े या राजनीतिक अनिश्चितता हो, तो विदेशी निवेशक अपना पैसा निकालने लगते हैं।
इससे डॉलर की मांग बढ़ती है और रुपया कमजोर होता है।
उदाहरण:
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भारत में महंगाई अचानक बढ़ जाए → निवेशक घबराएं → डॉलर खरीदें → रुपये की कीमत गिरने लगे।
6. फॉरेक्स मार्केट में सट्टेबाज़ी (Speculation)
अगर बाजार में यह अनुमान फैल जाए कि रुपये की कीमत गिरेगी, तो ट्रेडर पहले से ही डॉलर खरीदने लगते हैं।
इससे डॉलर की मांग और बढ़ जाती है।
उदाहरण:
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खबर फैल गई कि RBI ब्याज दर घटा सकता है → ट्रेडर डॉलर खरीदने लगते हैं → डॉलर मजबूत, रुपया कमजोर।
सीधी भाषा में कहें, तो डॉलर तब महंगा होता है जब उसकी मांग बढ़ जाती है —
चाहे वो तेल खरीदने के लिए हो, विदेशी निवेश के बाहर जाने से हो, या वैश्विक स्तर पर डॉलर की मजबूती के कारण हो और जब डॉलर की मांग बढ़ती है तो रुपये की कीमत अपने आप गिर जाती है।
FAQ
प्रश्न 1: डॉलर महंगा क्यों होता है?
डॉलर महंगा तब होता है जब उसकी मांग बढ़ जाती है—जैसे ज़्यादा आयात, विदेशी निवेश का निकलना या वैश्विक स्तर पर डॉलर की मजबूती।
प्रश्न 2: क्या कच्चे तेल की कीमत डॉलर को प्रभावित करती है?
हाँ, क्योंकि भारत तेल डॉलर में खरीदता है। तेल महंगा होने पर अधिक डॉलर की जरूरत पड़ती है, जिससे रुपये की कीमत गिरती है।
प्रश्न 3: विदेशी निवेशकों के कारण डॉलर क्यों बढ़ता है?
जब विदेशी निवेशक भारतीय शेयर-बॉन्ड बेचकर पैसा बाहर ले जाते हैं, तो उन्हें डॉलर चाहिए होता है। इससे डॉलर की डिमांड बढ़ती है और रुपया कमजोर होता है।
प्रश्न 4: क्या अमेरिका की ब्याज दरें डॉलर पर असर डालती हैं?
हाँ, अगर अमेरिका ब्याज दरें बढ़ाता है तो दुनिया का निवेश डॉलर में जाने लगता है। इससे डॉलर मजबूत और रुपये जैसे अन्य मुद्रा कमजोर हो जाते हैं।
प्रश्न 5: क्या भारत के राजनीतिक और आर्थिक हालात डॉलर की कीमत पर असर डालते हैं?
हाँ, अस्थिरता या महंगाई बढ़ने से विदेशी निवेशक पैसा निकालते हैं, जिससे डॉलर मांग बढ़ती है और रुपये की कीमत गिरती है।
प्रश्न 6: क्या सट्टेबाज़ी (speculation) से भी डॉलर की कीमत बदलती है?
हाँ, अगर बाजार में अनुमान हो कि रुपया गिरेगा, तो ट्रेडर पहले से डॉलर खरीद लेते हैं, जिससे डॉलर और महंगा हो जाता है।
प्रश्न 7: क्या सरकारी कदम (RBI intervention) डॉलर को प्रभावित कर सकते हैं?
हाँ, RBI बाजार में डॉलर बेचकर या खरीदकर रुपये की कीमत को नियंत्रित करने की कोशिश करता है, जिससे डॉलर की कीमत में उतार-चढ़ाव आता है।
प्रश्न 8: क्या डॉलर की कीमत कम भी हो सकती है?
हाँ, अगर विदेशी निवेश बढ़े, आयात कम हो, निर्यात बढ़े, या डॉलर की वैश्विक ताकत कम हो–तो डॉलर सस्ता और रुपया मजबूत हो सकता है।


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