भारत का सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court of India) देश का सर्वोच्च न्यायिक निकाय है। यह संविधान का संरक्षक और न्यायिक प्रणाली का अंतिम अपील अदालत है।
भारत का सर्वोच्च न्यायालय: संरचना, शक्ति और कार्य | Supreme Court of India: Composition, Power and Functions in hindi
भारत का सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court of India) देश का सर्वोच्च न्यायिक निकाय है। यह संविधान का संरक्षक और न्यायिक प्रणाली का अंतिम अपील अदालत है। इसकी स्थापना 28 जनवरी 1950 को हुई थी और यह नई दिल्ली में स्थित है। आइए इसकी संरचना, शक्तियाँ और कार्य विस्तार से समझते हैं।
1. सर्वोच्च न्यायालय की संरचना (Structure of Supreme Court)
मुख्य घटक:
- मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India - CJI)
- अन्य न्यायाधीश (Judges)
न्यायाधीशों की संख्या:
- मूल रूप से 1950 में न्यायाधीशों की संख्या 8 थी (1 मुख्य न्यायाधीश + 7 अन्य न्यायाधीश)।
- वर्तमान में, संविधान संशोधन के बाद अधिकतम न्यायाधीशों की संख्या 34 (1 मुख्य न्यायाधीश + 33 अन्य न्यायाधीश) हो सकती है।
न्यायाधीशों की नियुक्ति:
- राष्ट्रपति द्वारा नियुक्ति की जाती है।
- नियुक्ति में कॉलेजियम प्रणाली का उपयोग किया जाता है, जिसमें CJI और वरिष्ठतम न्यायाधीश शामिल होते हैं।
कार्यकाल और सेवानिवृत्ति:
- न्यायाधीश 65 वर्ष की उम्र तक अपने पद पर बने रहते हैं।
- उनका कार्यकाल निश्चित नहीं होता, लेकिन वे स्वयं इस्तीफा दे सकते हैं या संसद द्वारा महाभियोग (Impeachment) के माध्यम से हटाए जा सकते हैं।
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2. सर्वोच्च न्यायालय की शक्तियाँ (Powers of Supreme Court)
1. मूल अधिकारों का संरक्षण (Guardian of Fundamental Rights)
- संविधान के भाग 3 में दिए गए मौलिक अधिकारों (Fundamental Rights) की रक्षा करता है।
- अनुच्छेद 32 के तहत, कोई भी नागरिक रिट याचिका (Writ Petition) दायर कर सकता है।
- Habeas Corpus, Mandamus, Prohibition, Certiorari, और Quo-Warranto जैसी रिट जारी कर सकता है।
2. मूल अधिकारिता (Original Jurisdiction) – अनुच्छेद 131
- केंद्र और राज्यों के बीच विवादों का निपटारा करता है।
- यदि दो राज्यों के बीच कोई संवैधानिक विवाद हो, तो यह अदालत इसे हल करती है।
3. अपीलीय अधिकारिता (Appellate Jurisdiction) – अनुच्छेद 132-136
- हाई कोर्ट के फैसलों के खिलाफ अपील सुनता है।
- सिविल, आपराधिक और संवैधानिक मामलों में अंतिम अपील अदालत है।
4. परामर्शी अधिकार (Advisory Jurisdiction) – अनुच्छेद 143
- राष्ट्रपति किसी संवैधानिक या कानूनी प्रश्न पर न्यायालय से परामर्श (Advice) मांग सकता है।
5. न्यायिक पुनरावलोकन (Judicial Review)
- संसद और राज्य विधानमंडलों द्वारा बनाए गए किसी भी कानून को संविधान के खिलाफ पाए जाने पर असंवैधानिक घोषित कर सकता है।
6. महाभियोग (Impeachment) का निर्णय
- राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और अन्य संवैधानिक पदों पर बैठे व्यक्तियों के खिलाफ कार्यवाही कर सकता है।
3. सर्वोच्च न्यायालय के कार्य (Functions of Supreme Court)
1. संविधान की व्याख्या (Interpretation of Constitution)
- भारतीय संविधान की व्याख्या करता है और संवैधानिक मामलों को हल करता है।
2. राष्ट्रीय सुरक्षा और आपातकालीन मामलों की सुनवाई
- संविधान के आपातकालीन प्रावधानों से जुड़े मामलों पर निर्णय करता है।
3. केंद्र और राज्य सरकारों के बीच विवाद सुलझाना
- यदि केंद्र और राज्य सरकारों के बीच कोई कानूनी विवाद होता है, तो सुप्रीम कोर्ट इसका निपटारा करता है।
4. चुनावी विवादों का समाधान
- राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव से संबंधित विवादों की सुनवाई करता है।
5. लोक हित याचिका (Public Interest Litigation - PIL)
- कोई भी नागरिक या संगठन, सार्वजनिक हित से जुड़े किसी भी मुद्दे पर PIL दायर कर सकता है।
6. अपराधियों की अंतिम अपील (Final Appeal for Criminal Cases)
- किसी भी अपराधी के लिए यह अंतिम अपील की अदालत होती है।
- दोषी को फाँसी की सजा देने या उसे माफ करने का अंतिम निर्णय यही अदालत लेती है।
भारत में सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम और NJAC: न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रणाली का विश्लेषण
परिचय
भारतीय न्यायपालिका की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए न्यायाधीशों की नियुक्ति एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। इस संदर्भ में, सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम प्रणाली (Supreme Court Collegium System) और राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (National Judicial Appointments Commission - NJAC) प्रमुख रूप से चर्चा में रहे हैं। जहाँ कोलेजियम प्रणाली न्यायाधीशों की नियुक्ति में एक आंतरिक प्रक्रिया है, वहीं NJAC इसे अधिक पारदर्शी और जवाबदेह बनाने का प्रयास था। लेकिन 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने NJAC को असंवैधानिक घोषित कर दिया और कोलेजियम प्रणाली को बहाल कर दिया। इस लेख में हम इन दोनों प्रणालियों का विस्तृत अध्ययन करेंगे।
1. सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम प्रणाली क्या है?
1.1 कोलेजियम प्रणाली की परिभाषा
कोलेजियम प्रणाली वह प्रक्रिया है जिसके तहत सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के न्यायाधीशों की नियुक्ति और तबादले किए जाते हैं। इसमें सरकार की भूमिका सीमित होती है और यह पूरी तरह से न्यायपालिका के वरिष्ठ न्यायाधीशों पर निर्भर करता है।
1.2 कोलेजियम के सदस्य
- मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India - CJI)
- सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठतम न्यायाधीश
1.3 कोलेजियम प्रणाली की प्रक्रिया
न्यायाधीशों की नियुक्ति
- जब सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट में नए न्यायाधीशों की आवश्यकता होती है, तो कोलेजियम योग्य उम्मीदवारों का चयन करता है।
- कोलेजियम की सिफारिशें राष्ट्रपति को भेजी जाती हैं।
- सरकार को सिफारिशों पर केवल एक बार आपत्ति उठाने का अधिकार होता है, लेकिन यदि कोलेजियम दोबारा वही नाम भेजता है, तो सरकार को नियुक्ति करनी ही होती है।
न्यायाधीशों का तबादला
- कोलेजियम हाई कोर्ट के न्यायाधीशों का तबादला करने का भी अधिकार रखता है।
1.4 कोलेजियम प्रणाली के लाभ
✔ न्यायपालिका की स्वतंत्रता बनी रहती है।
✔ सरकार का हस्तक्षेप न्यूनतम होता है, जिससे निष्पक्षता बनी रहती है।
✔ राजनीतिक दबाव से न्यायाधीशों की नियुक्ति सुरक्षित रहती है।
1.5 कोलेजियम प्रणाली की आलोचना
❌ पारदर्शिता की कमी: यह पूरी प्रक्रिया गोपनीय रहती है और आम जनता को जानकारी नहीं मिलती।
❌ जवाबदेही का अभाव: न्यायाधीश खुद ही न्यायाधीशों की नियुक्ति करते हैं, जिससे भाई-भतीजावाद (Nepotism) का खतरा बढ़ जाता है।
❌ सरकार की भूमिका नहीं: लोकतंत्र में कार्यपालिका और न्यायपालिका का संतुलन आवश्यक होता है, लेकिन इस प्रणाली में सरकार की भूमिका बहुत सीमित हो जाती है।
2. राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) क्या था?
2.1 NJAC का गठन और उद्देश्य
2014 में संसद ने 99वां संविधान संशोधन पारित किया, जिसके तहत राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) की स्थापना की गई। इसका मुख्य उद्देश्य कोलेजियम प्रणाली की पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाना था।
2.2 NJAC के सदस्य
NJAC में कुल 6 सदस्य होते:
- मुख्य न्यायाधीश (CJI) – अध्यक्ष के रूप में
- सुप्रीम कोर्ट के दो वरिष्ठतम न्यायाधीश
- कानून मंत्री (Law Minister)
- दो प्रतिष्ठित व्यक्ति (PM, CJI और विपक्ष के नेता द्वारा नियुक्त)
2.3 NJAC की विशेषताएँ
- न्यायाधीशों की नियुक्ति में सरकार और आम जनता के प्रतिनिधियों को शामिल करना।
- न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच संतुलन बनाए रखना।
- न्यायाधीशों की नियुक्ति को और अधिक पारदर्शी बनाना।
2.4 NJAC को असंवैधानिक क्यों घोषित किया गया?
2015 में, सुप्रीम कोर्ट ने "चुनाव आयोग बनाम भारत संघ" (Fourth Judges Case) में NJAC को असंवैधानिक घोषित कर दिया। इसके प्रमुख कारण थे:
- न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर खतरा: NJAC में कार्यपालिका (सरकार) का दखल बढ़ गया था।
- संविधान के मूल ढांचे (Basic Structure) का उल्लंघन: न्यायपालिका की स्वतंत्रता संविधान का मूल ढांचा है, जिसे बदला नहीं जा सकता।
- राजनीतिक हस्तक्षेप का खतरा: NJAC में सरकार और बाहरी व्यक्तियों की भागीदारी से राजनीतिक प्रभाव बढ़ सकता था।
3. कोलेजियम और NJAC: कौन सा बेहतर? (Collegium vs NJAC: Which is Better?)
बिंदु | कोलेजियम प्रणाली | NJAC |
---|---|---|
स्वतंत्रता | न्यायपालिका पूरी तरह स्वतंत्र | सरकार का हस्तक्षेप संभव |
पारदर्शिता | प्रक्रिया गोपनीय, आम जनता को जानकारी नहीं | अधिक पारदर्शिता, सार्वजनिक भागीदारी |
जवाबदेही | न्यायपालिका स्वयं अपने सदस्यों को चुनती है | चयन में सरकार और बाहरी लोगों की भागीदारी |
भाई-भतीजावाद | सिफारिशों में भाई-भतीजावाद की संभावना | बाहरी सदस्य संतुलन बना सकते थे |
नियुक्ति में देरी | नियुक्तियों में देरी होती है | अपेक्षाकृत तेज़ प्रक्रिया |
4. उदाहरण के माध्यम से समझें
उदाहरण 1: कोलेजियम की नियुक्ति पर विवाद
2019 में जस्टिस अकिल कुरैशी को त्रिपुरा हाई कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त करने की सिफारिश कोलेजियम ने की, लेकिन सरकार ने इसे रोक दिया। यह कोलेजियम और सरकार के बीच टकराव का उदाहरण था।
उदाहरण 2: NJAC लागू होता तो क्या होता?
यदि NJAC लागू होता, तो न्यायाधीशों की नियुक्ति में सरकार और अन्य बाहरी लोगों का हस्तक्षेप बढ़ जाता, जिससे न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर सवाल उठ सकते थे।
भारत में न्यायपालिका की स्वतंत्रता लोकतंत्र का आधार है, लेकिन साथ ही न्यायाधीशों की नियुक्ति में पारदर्शिता और जवाबदेही भी जरूरी है। कोलेजियम प्रणाली न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बनाए रखती है, लेकिन इसमें पारदर्शिता की कमी है। वहीं, NJAC एक अच्छा विकल्प हो सकता था, लेकिन इसमें सरकार का हस्तक्षेप न्यायपालिका की निष्पक्षता को खतरे में डाल सकता था।
आज भी, न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रणाली में सुधार की जरूरत बनी हुई है। हमें एक ऐसी प्रणाली की आवश्यकता है जो न्यायपालिका की स्वतंत्रता बनाए रखे, लेकिन साथ ही नियुक्ति प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी और जवाबदेह बनाए।
क्या न्यायपालिका और सरकार मिलकर कोई नई, संतुलित प्रणाली बना सकते हैं? यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है, जिसका उत्तर भविष्य में मिलने की संभावना है।
NJC Bill 2022: क्या भारत की न्यायिक नियुक्तियों में बदलाव आएगा?
राष्ट्रीय न्यायिक आयोग विधेयक, 2022 भारत में न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया में सुधार लाने के उद्देश्य से प्रस्तावित एक महत्वपूर्ण विधेयक है। इसका मुख्य लक्ष्य न्यायपालिका में पारदर्शिता, जवाबदेही और निष्पक्षता सुनिश्चित करना है।
विधेयक की प्रमुख विशेषताएँ
न्यायिक नियुक्तियों का विनियमन: यह विधेयक सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों एवं अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए एक राष्ट्रीय न्यायिक आयोग (National Judicial Commission - NJC) की स्थापना का प्रस्ताव करता है। यह आयोग न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण की प्रक्रिया को विनियमित करेगा।
न्यायिक मानकों का निर्धारण: विधेयक न्यायाधीशों के लिए आचार संहिता और मानकों को निर्धारित करेगा, जिससे न्यायिक प्रणाली में उच्च नैतिकता और पेशेवर मानकों को बनाए रखा जा सके।
शिकायत निवारण तंत्र: यह विधेयक न्यायाधीशों के दुर्व्यवहार या अक्षमता से संबंधित शिकायतों की जांच के लिए एक विश्वसनीय और उचित तंत्र स्थापित करेगा, जिससे न्यायपालिका की जवाबदेही सुनिश्चित हो सके।
न्यायाधीशों को हटाने की प्रक्रिया: विधेयक में न्यायाधीशों को हटाने की प्रक्रिया के संबंध में प्रावधान शामिल हैं, जिसमें संसद द्वारा राष्ट्रपति को संबोधित एक अभिभाषण प्रस्तुत करना शामिल है।
पृष्ठभूमि
इससे पहले, 2014 में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (National Judicial Appointments Commission - NJAC) की स्थापना के लिए 99वां संविधान संशोधन अधिनियम पारित किया गया था। इसका उद्देश्य कॉलेजियम प्रणाली की जगह एक स्वतंत्र आयोग के माध्यम से न्यायाधीशों की नियुक्ति करना था। हालांकि, 2015 में सर्वोच्च न्यायालय ने NJAC को असंवैधानिक घोषित करते हुए कॉलेजियम प्रणाली को बहाल किया।
उदाहरण
मान लीजिए, एक उच्च न्यायालय में न्यायाधीश की नियुक्ति होनी है। वर्तमान कॉलेजियम प्रणाली में, उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ न्यायाधीशों का एक समूह (कॉलेजियम) इस नियुक्ति की सिफारिश करता है। सरकार इस सिफारिश पर आपत्ति जता सकती है, लेकिन यदि कॉलेजियम पुनः वही नाम प्रस्तावित करता है, तो सरकार को नियुक्ति करनी होती है।
यदि राष्ट्रीय न्यायिक आयोग विधेयक, 2022 पारित हो जाता है, तो ऐसी नियुक्तियाँ NJC द्वारा की जाएँगी, जिसमें न्यायपालिका के साथ-साथ कार्यपालिका और नागरिक समाज के प्रतिनिधि भी शामिल होंगे। इससे नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ेगी।
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