हिमाचल प्रदेश को देवभूमि कहा जाता है। यहां कई प्राचीन एवं महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल हैं। कांगड़ा जिले में एक बेहद अनोखा शिवलिंग है। जिला कांगड़ा के इंदौ
विश्व का एकमात्र अर्धनारीश्वर शिवलिंग, शिव और माता पार्वती का मिलन
अब तक हम इस ब्लॉग पर भगवान शिव से जुड़े कई अनोखे मंदिरों के बारे में जानकारी दे चुके हैं। इसी कड़ी में आज हम बता रहे हैं भगवान शिव के एकमात्र मंदिर के बारे में जहां शिव और माता पार्वती का मिलन होता है।
हिमाचल प्रदेश को देवभूमि कहा जाता है। यहां कई प्राचीन एवं महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल हैं। कांगड़ा जिले में एक बेहद अनोखा शिवलिंग है। जिला कांगड़ा के इंदौरा उपमंडल मुख्यालय से छह किलोमीटर की दूरी पर शिव मंदिर काठगढ़ का विशेष महत्व है। शिवरात्रि पर इस मंदिर में प्रदेश के अलावा पंजाब और हरियाणा से भी श्रद्धालु आते हैं।
शिवरात्रि पर विशेष मेला लगता है
हर वर्ष शिवरात्रि के पर्व पर यहां तीन दिनों तक मेला लगता है। शिव और शक्ति के अर्धनारीश्वर रूप का संगम देखने के लिए कई भक्त यहां आते हैं। इसके अलावा सावन के महीने में भी यहां भक्तों की भीड़ देखी जा सकती है। वर्ष 1986 से पहले यहां केवल शिवरात्रि महोत्सव ही मनाया जाता था। अब शिवरात्रि के साथ रामनवमी, कृष्ण जन्माष्टमी, श्रावण मास महोत्सव, शरद नवरात्रि और अन्य त्योहार मनाये जाते हैं।
अर्धनारीश्वर शिवलिंग का स्वरूप
दो भागों में बंटे हुए शिवलिंग का अंतर ग्रह-नक्षत्रों के अनुसार घटता-बढ़ता रहता है और शिवरात्रि के दिन शिवलिंग के दोनों भाग मिलते हैं। यहां का शिवलिंग काले-भूरे रंग का है। प्राचीन काल से सात फीट से अधिक ऊंचा, छह फीट तीन इंच परिधि वाला, भूरे रेतीले पत्थर के रूप में यह स्वयंभू शिवलिंग ब्यास और छोंछ खड्ड के संगम के निकट एक टीले पर विराजमान है।
शिवलिंग दो भागों में बंटा हुआ है
यह शिवलिंग दो भागों में विभाजित है। छोटे हिस्से को माता पार्वती और ऊंचे हिस्से को भगवान शिव माना जाता है। मान्यता के अनुसार माता पार्वती और भगवान शिव के इस अर्धनारीश्वर का मध्य भाग नक्षत्रों के अनुसार घटता-बढ़ता रहता है और शिवरात्रि पर इन दोनों का मिलन होता है। शिव के रूप में पूजे जाने वाले शिवलिंग की ऊंचाई लगभग 7-8 फीट और पार्वती की होती है। इस रूप में पूजे जाने वाले शिवलिंग की ऊंचाई लगभग 5-6 फीट होती है।
ग्रह-नक्षत्रों के अनुसार दूरियां घटती-बढ़ती रहती हैं
यह दुनिया का एकमात्र ऐसा मंदिर माना जाता है जहां का शिवलिंग दो भागों में बंटा हुआ है। माता पार्वती और भगवान शिव के दो अलग-अलग स्वरूपों में बंटे शिवलिंग में ग्रहों और नक्षत्रों के परिवर्तन के अनुसार दोनों भागों के बीच का अंतर घटता-बढ़ता रहता है। ग्रीष्म ऋतु में यह रूप दो भागों में विभक्त हो जाता है तथा शीत ऋतु में पुनः एक रूप धारण कर लेता है।
शिव पुराण के अनुसार
शिव पुराण में वर्णित कथा के अनुसार भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु के बीच कुलीनता को लेकर युद्ध हुआ था। इस युद्ध को भगवान शिव देख रहे थे। दोनों के बीच युद्ध को शांत करने के लिए भगवान शिव अग्नि रूपी खंभे के रूप में प्रकट हुए। महाग्नि के समान यह स्तंभ काठगढ़ स्थित महादेव का विराजमान शिवलिंग माना जाता है। इसे अर्धनारीश्वर शिवलिंग भी कहा जाता है।
मंदिर का निर्माण सिकंदर ने करवाया था
ऐतिहासिक मान्यताओं के अनुसार काठगढ़ महादेव मंदिर का निर्माण सबसे पहले सिकंदर ने करवाया था। इस शिवलिंग से प्रभावित होकर सिकंदर ने टीले पर मंदिर बनाने के लिए भूमि को समतल कराया और यहां एक मंदिर बनवाया।
मंदिर समिति
वर्तमान में इस मंदिर में पूजा की जिम्मेदारी महंत काली दास और उनके परिवार पर है। साल 1998 से पहले इस मंदिर की पूजा की जिम्मेदारी उनके पिता महंत माधोनाथ के पास थी. इस प्राचीन मंदिर का सारा चढ़ावा वंश परंपरा के अनुसार मंदिर के पुजारी के परिवार को जाता है।
1984 में बनी थी मंदिर की प्रबंध समिति मंदिर के उत्थान के लिए वर्ष 1984 में प्राचीन शिव मंदिर प्रबंधक समिति, काठगढ़ का गठन किया गया था। वर्ष 1986 में इस सभा के पंजीकरण के बाद मंदिर में कई विकास कार्य किये गये। भक्तों की सुविधा के लिए. वर्ष 1995 में सभा ने प्राचीन शिव मंदिर के दाहिनी ओर श्री राम दरबार मंदिर का निर्माण करवाया।
सुविधाएँ
मंदिर समिति के प्रधान ओम प्रकाश कटोच का कहना है कि श्रद्धालुओं की बढ़ती संख्या को देखते हुए समिति ने दो लंगर हॉल, दो सराय, एक भव्य सुंदर पार्क, पीने के पानी की व्यवस्था और सुलभ शौचालय का निर्माण किया है। समिति द्वारा मंदिर में प्रतिदिन तीन बार निःशुल्क लंगर उपलब्ध करवाया जा रहा है। इसके अलावा समिति समय-समय पर निःशुल्क चिकित्सा शिविर भी आयोजित कर रही है।
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